मै हर रोज दुआओं में रब से तुझे ही मांगूगा
आखिर यूँ ही सताने की कोई तो हद होगी ही ।
तेरे लौट न आने की कोई तो हद होगी ही ।
मै हर रोज दुआओं में रब से तुझे ही मांगूगा,
रब के मान न जाने की कोई तो हद होगी ही ।
देखूंगा अंजामे दिल इश्क में क्या क्या होता है,
मुझको यूँ तड़पाने की कोई तो हद होगी ही
।
जामे मुहब्बत भरता हूँ दिल के इस पैमाने में,
दिल के इस पैमाने की कोई तो हद होगी ही ।
इक दिन सब भ्रम टूटेंगे इक दिन राज खुलेंगे सब,
दिल को यूँ भरमाने की कोई तो हद होगी ही ।
सहता हूँ तूफानों को यही सोचकर मै ‘नीरज’,
तूफानों के आने की कोई तो हद होगी ही ।