पत्थर ही चला दीजिए
कब से दौड़ रहा हूं पीछे
कुछ अब तो बता दीजिए!
गुस्ताखी ये मेरी है तो
पत्थर ही चला दीजिए
क्या करेगें जी के,
इस उजडे़ दयार में –
दर्दे जिगर को मेंरे
जहर ही पिला दीजिए ।
कब से पीछे तेरे…..
यादों के जंगल में
भटकती रूह मेंरी है –
गर मुश्किल मेल हो तो
मौत से ही मिला दीजिए ।
लोग कहते हैं पहले ऐ
सोनें की चिंडि़या थी
है जूस्तजू मेंरी यही
फिर पंख फैला दीजिए ।।
कब से पीछे तेरे…..
राजकुमार तिवारी राज