कविता

ये सावन

ये सावन की बारिश
और तुम्हारा प्यार
दोनो ही मेरे अंतर्मन को
भिगो देते है
मिल.जाती.है.ठंढक
कुछ पल ही सही
खो सी जाती हूँ
तुम्हारे बाहो में
सोचती हूँ
काश ये मेरा सावन हर रोज आता
तेरे बाहो के घेरे मे
मेरा दिन रात कट जाता
तेरे स्पर्श मात्र से ही
मिल जाते मुझे गर्मी
छू मंतर हो जाती सर्दी
और फिर अगले बारिश का
इंतजार करते हुये
मिलने की कसमे देते हुये
निकल पड़ते घर की.ओर।
.निवेदिता.चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४