गीतिका/ग़ज़ल

तुम्हारे हुश्न की मनमानी देख लिया

दरिया भी देखा,समन्दर भी देखा और तेरे आँखों का पानी देख लिया
दहकता हुश्न,लज़ीज नज़ाकत और तेरी बेपरवाह जवानी देख लिया

कचहरी,मुकदमा,मुद्दई और गवाह सब हार जाएँगे तेरे हुश्न की जिरह में
ये दुनियावालों की बेशक्ल बातें देखी और तेरे रुखसार की कहानी देख लिया

किताबें सब फीकी पड़ गयी तेरी तारीफ के सिलसिले हुए शुरू ज्योँ ही
चौक-चौराहे और गली-मोहल्ले में तेरी क़यामत के चर्चे बेज़ुबानी देख लिया

तुमसे मिलने से पहले तक कितनी बेरंग थी मेरी तमाम हसरतें नाकाम
तुमसे मिलके मैंने कायनात में गुलाबी,नीली,हरी और आसमानी देख लिया

तुम चलो जहाँ हवाएँ चल पड़ती हैं और रुको ज्यों तो धरती रो पड़ती है
तुम्हारा रहम देखा,तुम्हारा करम देखा और तुम्हारे हुश्न की मनमानी देख लिया

सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : salilmumtaz@gmail.com