लघुकथा

सच्ची खुशी

ऑस्ट्रेलिया के NSW में 9 मंजिली इमारत में रिपेयरिंग और रंग-रोगन का काम चल रहा था. बहुत-से मजदूर काम कर रहे थे. यों तो सभी मजदूर अपनी-अपनी Eskee लाते थे, जिसमें उनका नाश्ता, लंच, चाय-पानी-ठंडा सब कुछ होता था, क्योंकि यहां किसी को कुछ भी खिलाने-पिलाने का न तो रिवाज है, न किसी को कोई आशा ही होती है. सब अपने में मस्त हैं. एक परिवार में बेटी का जन्मदिन मनाया जाना था. बेटी से पूछा गया- ”रिंकी, आप अपने किन-किन दोस्तों को पार्टी पर बुलाओगी? उनके नाम और फोन नं. बताओ, ताकि मैं उनकी मॉम्स से चेक कर सकूं, कि कौन-कौन आ पाएगा.”

”मॉम, मैं किसी दोस्त को नहीं बुलाना चाहती.” रिंकी ने कहा. ”मॉम, उस दिन Labour Day है. उस दिन हम सबकी तो छुट्टी है, पर सारे मजदूर उस दिन भी काम करने आएंगे. क्यों न मैं उन सबके साथ अपनी खुशियां बांटूं?आप उन सबको निमंत्रित कर दीजिए, ताकि वे उस दिन हमारी खुशी में शामिल हो पाएं.”

 

शाम को रिंकी ने उन सबके सामने केक काटा. सबने मिलकर केक खाया, भोजन का आनंद लिया. सच्ची खुशी से सब सराबोर थे.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “सच्ची खुशी

  • लीला तिवानी

    मित्रों, नाते-रिश्तेदारों, पड़ोसियों और भरे पेट वालों को तो उत्सवों में सभी बुलाते हैं. वे उत्सव के रंग-ढंग और साज-सज्जा देखने और तुलना करने में ही व्यस्त हो जाते हैं. जरूरतमंदों और जिनको रोज पकवान खाने को न मिलते हों, उनके साथ अपनी खुशी बांटने से उनको भी सच्ची और अपरिमित खुशी मिलती है. रिंकी ने ऐसा ही किया. शाबाश रिंकी.

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