लेख

शिक्षा के क्षेत्र में सुविधा नही शिक्षा की विधा चाहिए

बात उन दिनों की है जब प्राईमरी पाठशला के शिक्षकों का वेतन अच्छा नही था किन्तु शिक्षा बहुत अच्छी थी! किन्तु आज वेतन बहुत अच्छा परन्तु शिक्षा अच्छी नही है। इसका ऐ मतलब नही कि पाठशाला में गलत तालीम दी जाती है, इसका सीधा ईसारा जाता है आज के शिक्षकों की गतिविधियों पर। आज के हिसाब से आगर देखा जाये तो पहले के शिक्षक अधिक शिक्षित नही होते थे फिर भी अपने विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा प्रदान करते थे कि वह उच्च से उच्चतम शिखर पर बडी सुगमता से पहुंच जाया करते थे। कुछ इस प्रकार से भी कह सकते हैं कि जो नर्सरी पूराने शिक्षकों ने लगाई थी वही आज के दौर में बडंे दरख्त बन चुके हैं।

वर्तमान समय में प्राईमरी पाठशालाओं में शिक्षित एवं प्रशिक्षित शिक्षकों की भरमार है, और वही शिक्षक सरकार की नीति से शायद भती भांति चिर-परिचित हैं शायद इसी कारण से उनके खुद के बच्चे किसी वित्त विहीन विद्यालय की शरण में जा कर शिक्षा ग्रहण करते हैं भला ऐसा क्यो ? जबकि सरकार तो विद्यालय में आने वाले हर छात्र को खाना, कपड़ा, बर्तन, किताबें आदि निःशुल्क उपलब्ध कराती है फिर भी समाज के सभ्य एवं जागरूक नागरिकों की संताने प्राईमरी विद्यालयों में देखने को क्यों नही मिल रही हैं क्यों ऐसा कभी किसी ने सोंचा है क्या ? क्योंकि शिक्षा जगत से जुड़ी तमाम योजनाओं के बीच शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बौना नजर आने लगा है! सरकार की शिक्षा नीति अपने मुख्य उदद्ेश्य से भटक गई है। यही कारण है कि आज का जागरूक नागरिक एवं सरकारी कर्मचारियों के नौनिहाल सरकारी विद्यलायों में देखने को नही मिलते है। आज के शिक्षक के अन्दर अपने पद प्रतिष्ठा को लेकर कोई समर्पण का भाव नही देखने को मिलता है क्योंकि वह एक शिक्षक नही वह तो एक सरकारी नौकर हैं और सरकार की डियूटी बजा रहें हैं इन्ही कारणों से सरकारी विद्यालयों की शिक्षा का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता ही जा रहा है। और वित्त विहीन विद्यालयों का बोलबाला बडी जोरों से सर चढ़कर बोल रहा है।

ग्रामींण क्षेत्रों में सरकारी पाठशाला से ज्यादा भीड़ तो सरकारी मधुशाला पर देखने को मिलती है! क्या सरकार को इस ओर ध्यान नही देना चाहिए ? कि हम इतनी सुविधाएं प्रदान करते हैं फिर भी हमारी पाठशालाओं में छात्रों का स्तर गिरता जा रहा है ? इसका साफ अर्थ ये है कि समाज के लोगों को शिक्षा के क्षेत्र में सुविधा नही शिक्षा की विधा चाहिए। वर्तमान का हाल यह है कि अपने पाल्यों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिये अभिभावक अपनी सारी जमा पूंजी दांव पर लगा रहा है। प्राईमरी विद्यलायों में तब तक ही छात्रों की भीड़ देखने को मिलती है जब तक विद्यालय में खिचड़ी भोज न हो और भोज हो जानें के बाद छात्रों की संख्या मंे भारी गिरावट देखने को मिलती है।

एक तीर से कई निशाने लगाने वाली सरकार की यह नीति जब तक समाप्त नही होगी तब तक शिक्षा का स्तर सरकार के विद्यालयों से गिरता रहेगा, जब तक एक शिक्षक को सिर्फ अपनी शिक्षणेत्तर कार्य के सिवा कुछ अन्य कार्य न दिया जाये जनगणना, पल्स पोलियो, चुनाव, रैली आदि जैसे कार्यों के लिये क्या शिक्षक ही है और कोई नही जो शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं क्या वह इस लायक भी नही बन पाये ? ऐसा बिल्कुल नही है कि सरकार कुछ नही जा रही है वह तो सब कुछ जान रही है किन्तु अपने साथ ज्यादा पल्टन लेकर चलना नही चाह रही है। क्योंकि सरकार का यह उद्देश्य है कि शिक्षित कोई हो न पाये और अशिक्षित कोई रह न जाये।

राज कुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782