मुक्तक/दोहा

“मुक्तक”

“मुक्तक”

दीपक दीपक से कहे, कैसे हो तुम दीप।
माटी तो सबकी सगी, तुम क्यों जुदा प्रदीप।
रोज रोज मैं भी जलूँ, आज जले तुम साथ-
क्या जानू क्या राज है, क्यों तुम हुए समीप।।-1

धूमधाम बाजार में, चमक रहे घरबार
चाक लिए कुम्हार है, माटी महक अपार
तरह-तरह के दीप हैं, भिन्न-भिन्न लौ रंग
बिकता कोई बिन कहे, कहाँ चटक त्यौहार।।-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ