लघुकथा – प्रसव पीड़ा!
निशांत को सहसा उस दिन की याद आ गई, जब सीमा को प्रसव के लिए वह अस्पताल लाया था. सीमा प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी, छटपटा रही थी.
“स्थिति नाज़ुक है, बच्चा ऑपरेशन से ही होगा।” जांच करने वाली डॉक्टर ने सीमा की जांच करते हुए कहा था.
”ऑपरेशन! ऑपरेशन तो ऑपरेशन ही है, कुछ भी हो सकता है?” वह सोच में पड़ गया था.
”मिस्टर निशांत, आप सोच क्या रहे हैं? जल्दी बताइए, हमें जरूरी इंतजाम भी करने होंगे.” डॉक्टर ने उसकी सोच को तनिक बाधित-सा कर दिया था. उसे ऑपरेशन के खर्च के बारे में भी तो सोचना था न!
”ऑपरेशन के लिए रुपए-पैसे की चिंता मत करो निशांत,” सीमा ने उसकी दुविधा को ताड़ते हुए कहा था. ”मेरी अलमारी में तुम्हें मिल जाएंगे. त्योहारों के इस महीने मेरा बिजनेस बहुत चला था, मैंने अभी बैंक में जमा भी नहीं करवाया है. डॉक्टर को ऑपरेशन की परमीशन देकर जल्दी से ले आओ.” निशांत कुछ शांत हो गया था.
आवश्यक कार्यवाही करके वह तुरंत घर की ओर भागा. सीमा की बताई जगह पर रुपए भी जल्दी ही मिल गए थे. अस्पताल पहुंचते ही उसे बधाइयां मिलनी शुरु हो गईं. तब तक मां और भाई-बहिन भी पहुंच चुके थे. ”वारी जावां पुत्तर, सीमा ने बड़ी सोणी कुड़ी नूं जन्म दिता वै, जा तूं वी वेख लै.”
”सीमा ठीक है?” निशांत की चिंता जस की तस थी.
”हां जी, सीमा भी स्वस्थ है और बेटी भी.” प्रसव कक्ष से बाहर निकलती हुई नर्स ने चहकते हुए कहा था.
”ऑपरेशन?”
”निशांत, ऑपरेशन की नौबत ही नहीं आई. प्रसव सामान्य ढंग से हो गया और जच्चा-बच्चा दोनों ही स्वस्थ भी हैं, मिस्टर निशांत. सीमा ने ग़ज़ब की हिम्मत दिखाई. मैं खुद बहुत हैरान हूं. ऐसा कम ही होता है.” डॉक्टर ने भी अंदर से निकलते हुए कहा.
फिर सीमा ने ही बताया था- ”ऑपरेशन की बात सुनते ही मुझे सासू मां की दी हुई टिप याद आ गई. उन्होंने कहा था- प्रसव के समय हिम्मत रखनी होती है. डॉक्टर तो फटाफट ऑपरेशन की सलाह दे देते हैं, लेकिन प्रसूता का जज्बा ही प्रसव पीड़ा को नवजीवन को आसानी से रूप-आकार दे देता है. वही टिप काम कर गई थी.”
शायद सीमा ने बहाने से निशांत को घर भेजकर उसकी असह्य प्रसव पीड़ा देखने से बचा लिया था.
निशांत तो सीमा की उस देखी-भोगी प्रसव पीड़ा को ही अब तक नहीं भुला पाया था.
एक लेखक के मन में जब कोई विचार या रचना उपजे, वह जब तक उसको किसी कारण अपने मनपसंद रूप में चित्रित या सृजित नहीं कर पाता, तब तक उसकी पीड़ा प्रसव पीड़ा के समान ही होती है, संभवतः यह सभी लेखकों का भी अनुभव होगा.