कविता

तन्हाई….

जब भी तन्हाई में होती हूँ
वो नजर आता है
निगाहें स्थिर हैं
गति मंथर है
धड़कनें सामान्य हैं
जिंदगी रोजमर्रा की सी है
जरा वक्त बैठी हूँ लॉन में
अनायास ही वो नजर आता है

शांत जल में हलचल सा होता है
गोल गोल चक्रियां सी बनती है
लहरें उठती हैं
लहरों में सिमटती चली जाती है
सरसराहट होता है
एक आहट सी होती है
वो आता है दबे पांव
एक परछाई सी नजर आती है

खो जाती हूँ ख्यालों में अकसर
सोचती हूँ विचारती हूँ
प्रेम से सिक्त
सिंचित हो, तन मन से भीग जाती हूँ
भ्रम में ही सही
तेरे प्रेम में वर्षों से
तन्हा ही जिए जाती हूँ।

*बबली सिन्हा

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