गीतिका/ग़ज़ल

गजल – कुछ बोलो

छप्पन ईंची सीने पर क्यों आरोप लगाते, कुछ बोलो,
बोये थे पेड बबूल के, आम कहाँ से आयेंगे, कुछ बोलो?
लूटा है मुल्क अभी तक जिसने, नित नये घोटाले कर,
क्यों खामोश जुबां आपकी घोटालों पर, कुछ बोलो?
सच है विध्वंस हुआ पाक का, दो टूकडों में भी बाँटा था,
अपने सैनिक ला न सके, क्यों उनके छोडे, कुछ बोलो?
लडी थी सेना लाहौर तलक, पर तुमने वह भी छोड दिया,
जो पाक के कब्जे में, उससे क्यों मुँह मोड लिया, कुछ बोलो?
जो करें समर्थन आज पाक का, आतंक के हमदर्द बने,
छप्पन ईंच की टेढी नजरें, तुमने हमला बोल दिया, कुछ बोलो?
अलगाववादीयों के संरक्षक जो, तुम उनके खेवनहार बने,
पत्थरबाजों पर सख्ती, हुर्रियत की सुरक्षा घटती, क्यों दर्द घना, कुछ बोलो?

अ कीर्तिवर्धन