गीतिका/ग़ज़ल

इत्तेफाक

उनका सरेराह मिलना कोई इत्तेफाक न था
गुलों का बहारों में खिलना कोई इत्तेफ़ाक न था
लाइलाज हो गए थे हम तेरे इश्क़ में जब
 रिसते जख्मों  को सिलना कोई इत्तेफाक न था।
 मेरी हर तन्हाई आबाद  रही तेरी यादों से
 रेत मुट्ठी से फिसलना कोई इत्तेफाक न था।
ख्वाहिशो का शीशमहल  टूट कर जब चूर हो गया
मेरा उठ के संभलना कोई इत्तेफाक न था।
रूठे जुगनुओं को मनाने चाँद जमीं पे उतर आया
‘मन’  इश्क़ की इंतेहा ये कोई इत्तेफ़ाक न था।
— गीता गुप्ता ‘मन’

गीता गुप्ता 'मन'

पति का नाम-मनीष गुप्ता पता-ग्रा-राधागंज पत्रा-बिहार जि-उन्नाव उत्तरप्रदेश शैक्षिक योग्यता-एम ए, बी एड,