मिट्टी की पट्टी
यह प्राकृतिक चिकित्सा की सबसे प्रमुख क्रिया है। मैं लिख चुका हूँ कि प्राकृतिक चिकित्सा का मानना है कि आकस्मिक दुर्घटनाओं को छोड़कर सभी बीमारियों की माता पेट की खराबी कब्ज है। कब्ज पुराना पड़ जाने पर आँतों में मल चिपककर सड़ता रहता है और शरीर में विकार पैदा करता है, जिससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ हो जाती हैं। पेड़ू (नाभि से नीचे का पेट का आधा भाग पेड़ू कहा जाता है) पर रखी गयी मिट्टी की पट्टी इसी कब्ज को दूर करने के लिए रामबाण चिकित्सा है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा में सभी रोगियों का इलाज पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी रखकर प्रारम्भ किया जाता है।
मिट्टी की पट्टी रखने की विधि बहुत सरल है। इसके लिए जमीन से एक-दो फुट नीचे की साफ मिट्टी ली जाती है। मिट्टी कहीं से भी ले सकते हैं, लेकिन उसमें कूड़ा-करकट और कंकड़ नहीं होने चाहिए। आवश्यक होने पर उसे छान लिया जाता है। अब उसे ठंडे पानी में आटे की तरह सान लिया जाता है। इसी से लगभग 6 इंच चैड़ी, 10 इंच लम्बी और पौन इंच मोटी चैकोर पट्टी किसी कपड़े पर बना लें। यह ध्यान रहे कि मिट्टी के बीच में हवा आदि न हो। इस पट्टी को उल्टा करके पेड़ू पर रखा जाता है और किसी कम्बल आदि से ढक दिया जाता है। इस पट्टी को 20 मिनट से 30 मिनट तक रखी रहने देते हैं। उसके बाद सावधानी से हटा देते हैं और कपड़े से पौंछ देते हैं।
आप चाहें तो ऐसी दो और छोटी-छोटी पट्टियाँ या पेड़े बनाकर आँखों पर भी रख सकते हैं। इनसे आँखों को बहुत लाभ होता है।
पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी रखने से यह हमारी आँतों की गर्मी को सोख लेती है। इससे आँतों में चिपका हुआ वर्षों पुराना मल भी टूट जाता है, जिससे आँतें क्रियाशील हो जाती हैं और पाचन शक्ति बहुत सुधर जाती है। मिट्टी की पट्टी के बाद गुनगुने पानी का एनीमा लेने से बहुत मल निकलता है। एनीमा लेने की विधि आगे की कड़ी में बतायी गयी है। यदि कब्ज बहुत पुराना हो, तो मिट्टी की पट्टी और उसके बाद एनीमा का प्रयोग कई सप्ताह तक नित्य करने की आवश्यकता हो सकती है।
यदि आप जमीन से नीचे की मिट्टी की व्यवस्था न कर सकें, तो सभी जगह उपलब्ध मुल्तानी मिट्टी का उपयोग भी इसके लिए किया जा सकता है। लेकिन वह आधे-चौथाई इंच से अधिक मोटी नहीं बनानी चाहिए। इसके भी अभाव में ठंडे पानी में तौलिया भिगोकर भी पेड़ू पर रख सकते हैं। इसको दो-तीन मिनट बाद बदल देना चाहिए। इससे भी मिट्टी की पट्टी का लाभ कुछ सीमा तक मिल जाता है।
— डाॅ विजय कुमार सिंघल