गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

भूल के….

रंगीं कागज़ के ये चंद टुकड़े कमाना भूल के।
आ लगा लें दिल ज़रा दिल को जलाना भूल के।।

मुझको कब परवाह थी दुनिया तेरे दस्तूर की।
जी रहा हूँ देख ले ‘उसको भुलाना’ भूल के।।

बच्चों की तकरार को तकरार ही रहने दो तुम।
देख वो फिर हँस दिए रोना रुलाना भूल के।।

यूँ हर एक शय को ज़माने की न तू दिल से लगा।
जाना भी तय है तमन्ना का खजाना भूल के।।

एक कदम तेरा बढ़े और दूसरा मेरा ‘लहर’।
ऐसा करते हैं चलो झगड़ा पुराना भूल के।।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा