गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

हर दिन होली और हर रात दिवाली है
जब बिहारी की महबूबा होती नेपाली है

ग़र यकीं ना आये तो इश्क़ करके देखो
फिर समझ जाओगे क्या होती कंगाली है

जिसकी खातिर लड़ता रहा वो ज़माने से
आज उसी ने कह दिया उसे तू मवाली है

जरूर इज्ज़त करता होगा वो उसकी
जो ज़लील होने के बाद भी ज़बां संभाली है

जीने की वज़ह ही बनती है मर जाने की
मोहब्बत में होती हर बात निराली है

:- आलोक कौशिक

आलोक कौशिक

नाम- आलोक कौशिक, शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य), पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन, साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित, पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101, अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com