ग़ज़ल
आँख से खुदगर्ज़ी का पर्दा हटा कर देखना
फासले माग़रूरी के सारे मिटा कर देखना
पाप धुल जाएंगे तेरे पूरे उस सैलाब में
दूसरे के गम में कुछ आँसू बहा कर देखना
जुम्बिश-ए-मिजगां में मिट जाएगी सारी तीरगी
उम्मीद की छोटी सी एक शमा जला कर देखना
जानना हो बीतती है दिल पे जो तेरी वजह से
अपने जैसे संग दिल से दिल लगा कर देखना
इश्क़ के अपने भी कुछ आदाब होते हैं मियाँ
देखना जब भी उसे नज़रें झुका कर देखना
— भरत मल्होत्रा