कविता

उज्ज्वला छंद

प्यार से तुम लगा लो गले ।
पाप से हूँ भरा मैं भले ।।
बाँह मेरी थाम लीजिए ।
दर्श अपना दिखा दीजिए ।।

मत किनारा करो आज तो ।
आशीष दे करो राज तो ।।
भक्ति साज तो देना हमें ।
कष्ट से अब उतारो हमें ।।

थाम कश्ती को लो न कभी ।
कम लहरों को कर दो अभी ।।
डूब जाऊँ न कुछ तो करो ।
दम देने का दम तो भरो ।।

यही भक्ति ही पहचान है ।
मिली शक्ति मुझे दान है ।।
एक तेरा सहारा मुझे ।
मिला अब तो किनारा मुझे ।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति ‘