रहती हैं
शाम में बदलियां भी रहती हैं
कुछ न कुछ तल्खियां भी रहती हैं
बेतकल्लुफ न घर से तुम निकलो
छत पे कुछ लड़कियां भी रहती हैं
यों न झटके से पास लाओ मुझे
कान में बालियां भी रहती हैं
कितनी बातों को तुम छुपाओगे
हाथ में चूड़ियाँ भी रहती हैं
बैठ जाता हूं बात सच लिखने
हाँ मेरी ग़लतियाँ भी रहती हैं
हमने ने सोचा न मारकर दुल्हन
घर में कुछ बेटियां भी रहती हैं
— डा जियाउर रहमान जाफरी