गीत/नवगीत

क्यों मन धधके बन कर गोला

क्यों मन धधके बन कर गोला
फुफकारे क्यों फूल चमन का,
क्योंतृण-तृण सह पत्ता डोला?
स्थिर सिंधु में हलचल क्यों है,
क्यों मन धधके बन कर गोला?
वैचारिक वेदी पर क्यों अब,
गह शस्त्र  विचार खड़ें हैं।
लांछन का हथियार सँभाले,
करने को हर वार खड़ें हैं।
बस्ती-बस्ती विवश दहकती,
मानवता का जलता होला।
यौवन का मन भूल प्रेम को,
नफ़रत करने को आमादा
कसम प्रेम की कुंठित लगती,
 मुखरित हर हिंसा का वादा
किसने रोपी फसल भयानक,
जिससे मन बनता हिंडोला।
तन-मन, घर सब  ईंधन समझे,
मन जिसका है चूल्हा भारी
इस ईंधन को  आग लगाकर,
बनती रोटी औ तरकारी
हर तीली को फूँक-फूँक कर,
उसकी सोच बनाती  शोला।
गुलशन की रौनक सब से है,
सब से  इसका  महके आँगन
सब सोंचें अच्छा सबके हित,
सबमें झलके बस अपनापन
प्रतिक्रिया सही तब कहलायी,
सही क्रिया को जब-जब तोला।
©सतविन्द्र कुमार राणा

सतविन्द्र कुमार राणा 'बाल'

पिता: श्री धर्मवीर, माता: श्रीमती अंगूरी देवी शिक्षा: एमएससी गणित, बी एड, पत्रकारिता एवं जन संचार में पी जी डिप्लोमा। स्थायी पता: ग्राम व डाक बाल राजपूतान, करनाल हरियाणा। सम्प्रति: हरियाणा स्कूल शिक्षा विभाग में विज्ञान अध्यापक पद पर कार्यरत्त। प्रकाशित: 5 लघुकथा साझा संकलन, साझा गजल संकलन, साझा गीत संकलन, काव्य साझा संकलन, अनेक प्रतिष्ठित साहित्यक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ, पत्रिकाओं के लघुकथा विशेषांकों में समीक्षाएं प्रकाशित, साहित्य सुधा, साहित्यिक वेब openbooksonline.com, ,साहित्यपेडिया, laghuktha.com ,लघुकथा के परिंदे समूह में लगातार रचनाएँ प्रकाशित। सह-सम्पादन: चलें नीड़ की ओर (लघुकथा संकलन), सहोदरी लघुकथा-१, २ जन्म स्थान: ग्राम व डाक बाल राजपूतान, करनाल हरियाणा। जन्मतिथि: 03/07/1981 पता: 105A न्यू डी सी कॉलोनी, नजदीक सेक्टर 33, गली नम्बर 3, करनाल, हरियाणा-132001। चलभाष: 7015749359, 9255532842