कविता

मां

मां  कहां चली गयी तुम,
मेरी हर मर्ज की दवा थी तुम,
मेरे हर ग़म की दवा थी तुम,
मेरे होंठों की हंसी थी तुम,
मेरी छोटी सी दुनिया थी तुम,
हर रिश्ता निभाना सिखाती थी तुम,
मां कहां चली गयी तुम।
जब गलती करूं तो डांटती थी तुम,
मेरी छोटी छोटी खुशी में शरीक होती थी तुम,
मेरी हर धड़कन सुन लेती थी तुम,
मेरी हर बात बिना बोले ही जान जाती थी तुम,
मेरे लिए लजीज खाना बनाती थी तुम,
मां की ममता का क्या बयान करूं,
भगवान भी जिसके आगे झुकता है,
मां के चरणों में समर्पित मेरा पूरा जहान है।।
— गरिमा

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384