कविता

मेरे हमसफ़र

प्रियवर,
कितने निश्चल हो तुम…..
बिल्कुल किसी मासूम की किलकारी की तरह।
मन में कोई कपट नहीं,
हमेशा दूसरों पर सब कुछ लुटाने का भाव।
हंसता, खिलखिलाता चेहरा,
कितनी अच्छी लगती है शबनमी मुस्कान,
जो सजती है तुम्हारे नरम गुलाबी होठों पर।
गुस्सा तो जैसे टिकता ही नहीं,
पिघल जाता है पल भर में मोम के समान।
अपनी इस मासूमियत ,इस मुस्कान को यूं ही बनाए रखना।

प्रियवर……
हिरनी सी चपलता लिए,
तुम्हारी ये आंखें,
जो इशारों इशारों में,
रोमांचित कर जाती हैं मुझे भीतर तक।
मखमली एहसास कराती तुम्हारी बोली,
इतने वाचाल हो तुम कि मौका ही नहीं देते,
अपने खयालों से अलग होने का।
अच्छा लगता है मुझे,
जब तुम लुटाते हो अपना असीम प्रेम मुझ पर।

प्रियवर …..
मेरे प्रेम की आत्मीयता को,
तुम समझ जाते हो सहजता से।
मेरी खामोशी को भी पढ़ लेते हो,
आत्मीय स्पर्श के साथ।
रजनीगंधा सी महक लिए,
महका जाते हो मेरे जीवन को।
शायद ही कभी संभव हो पाए,
तुम्हारे एहसास से मेरी जुदाई।

— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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