“सबको अच्छे लगते बच्चे”
चंचल-चंचल, मन के सच्चे।
सबको अच्छे लगते बच्चे।।
—
कितने प्यारे रंग रंगीले।
उपवन के हैं सुमन सजीले।।
—
भोलेपन से भरमाते हैं।
ये खुलकर हँसते-गाते हैं।।
—
भेद-भाव को नहीं मानते।
बैर-भाव को नहीं ठानते।।
—
काँटों को भी मीत बनाते।
नहीं मैल मन में हैं लाते।।
—
जीने का ये मर्म बताते।
प्रेम-प्रीत का कर्म सिखाते।।
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)