ग़ज़ल
जुदा तुमसे नही हूं सुन तेरी परछाईं हूं मैं
गुजरती है तुम्हें छू कर वही पुरवाई हूं मैं।
तुम्हारे दिलकी डोली मे ये दुल्हन उतरती है
तेरी धड़कन में बजती है वही शहनाई हूं मैं।
छुपकर अकेले में जिसे तुम याद करते हो
जिसे तुम तन्हा कहते हो तेरी तन्हाई हूं मैं।
इश्क के बीज बो इश्क को आबाद होने दो
तेरे ख्वाबों की खेती में अभी लहराई हूं मैं।
रुह से रुह का बंधन कभी तोड़े से ना टूटे
रुह तो रूह की है ये कब कहा पराई हूं मैं।
तुम्हारा लौट के आना सब कह गया जानिब
तुमने जितना भुलाया उतना याद आई हूं मैं।
— पावनी जानिब सीतापुर