गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

लगता है ज़िन्दगी से वह ऊब गया
तभी तो मेरी मोहब्बत में डूब गया

औरों से अलग था हर अन्दाज़ मेरा
सब उत्तर की ओर तो मैं जनूब गया

जीने की ज़िद में मरता नहीं है हौसला
न जाने कितनी बार मसला दूब गया

इश्क़ में भुला दिया था जिसने खुद को
सुना है कि भूल उसको महबूब गया

लिखा था बहुत ही कम तेरे ‘कौशिक’ ने
लेकिन पढ़ा उसको बहुत ख़ूब गया

✍️ आलोक कौशिक 

आलोक कौशिक

नाम- आलोक कौशिक, शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य), पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन, साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित, पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101, अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com