लघुकथा

जिस्म मंडी की रेशमा

सीमा परवीन उर्फ रेशमा को बेगमसराय के महबूबा जिस्म मंडी में उसके चाहने वाले उसके हसीन और आकर्षक जिस्म के कारण सनी लियोन के नाम से पुकारते थे। उसके आशिक़ों में सफ़ेदपोश, काले कोट और ख़ाकी वाले भी शामिल थे। जिस्म बेचना कभी भी उसकी मजबूरी नहीं रही। वह इस धंधे में इसलिए आई थी क्योंकि उसे लगता था कि रईस बनने का यह सबसे आसान तरीक़ा है। उसका मानना था कि यह व्यवसाय आदि काल से चल रहा है और अनंत काल तक चलता रहेगा।
एक बार जब पैसे को लेकर उसकी लड़ाई महबूबा जिस्म मंडी के सबसे पुराने दलाल नीरज देव के साथ हुई थी तो नीरज देव ने उससे कहा था – “इतना घमंड अच्छा नहीं है रेशमा! इस पेशे में जब तक जवानी है तभी तक पैसे हैं। जैसे ही जवानी ढलनी शुरू होती है, लोग भूलना शुरू कर देते हैं। तब ना ही हुस्न की तारीफ़ करने वाले ग्राहक होते हैं और ना ही लत बन चुके शौक़ों को पूरा करने के लिए पैसे।”
“तू सिर्फ़ अपनी फ़िक्र कर, मेरी नहीं। जब अभी मेरे पास लाखों हैं तो जवानी ढलने से पहले तक करोड़ों हो जाएंगे। मेरे शौक़ जिस तरह से आज पूरे हो रहे हैं, कल भी उसी तरह से पूरे होंगे।” यह कहते हुए रेशमा ने नीरज देव को धक्के मार कर अपने कमरे से बाहर निकाल दिया था।
इस घटना को पंद्रह वर्ष हो चुके थे और रेशमा अपने जिस्म से करोड़ों रुपए कमा चुकी थी। लेकिन अब उसके हुस्न के क़दरदाऩों की संख्या पहले से काफ़ी कम हो गई थी। उसे नीरज देव की कही हुई बातें याद आने लगीं। इसलिए काफ़ी सोच-विचार करने के बाद उसने अपनी जमा पूंजी को होटल उद्योग में लगाने का सोचा।
रेशमा बहुत उत्साहित थी, क्योंकि कल वह अपनी सारी जमा पूंजी से एक होटल खरीदने वाली थी। उसे लग रहा था जैसे कल उसका नया जन्म होने वाला हो। ख़ूबसूरत भविष्य के सपने में खोए हुए उसे कब नींद आ गई उसको पता भी नहीं चला।
अगले दिन जब सूर्योदय हुआ उसके ख़ूबसूरत भविष्य का सूर्यास्त हो चुका था। कोई अज्ञात चोर उसके शयनकक्ष की अलमारी से उसकी सारी जमा पूंजी चुरा कर ले जा चुका था। उसके रसूख़ के कारण पूरे शहर की पुलिस उस अज्ञात चोर की तलाश में लग गई थी। पुलिस ने चौबीस घंटे के भीतर ही उस चोर की लाश एक निर्माणाधीन भवन से बरामद कर लिया था। लेकिन चुराए गए पैसे बरामद नहीं हो सके थे। फिर भी पुलिस की तफ़्तीश जारी थी।
इस घटना से रेशमा को गहरा सदमा लगा और वह बीमार रहने लगी। अब कोई उससे मिलने भी नहीं आता था। उसकी ऐसी हालत देखकर नीरज देव को उस पर दया आ गई। वह रेशमा को लेकर डॉक्टर के पास पहुंच गया। शारीरिक जांच करने के उपरांत डॉक्टर ने बताया कि रेशमा विषाणु जनित महामारी ‘कोरोना’ से संक्रमित हो गई है। रेशमा का इलाज चला और कुछ ही दिनों में वह पूरी तरह से ठीक हो गई। लेकिन वायरस के प्रसार को रोकने के लिए तब तक पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया गया था। रेशमा की सेहत तो ठीक हो गई थी परंतु उसकी आर्थिक स्थिति पूरी तरह से बिगड़ चुकी थी। रेशमा ने सोचा – “जब तक देश में लॉकडाउन चल रहा है तभी तक ज्यादा परेशानी है। लॉकडाउन खत्म होने के बाद इस जिस्म से जीने लायक पैसे तो कमा ही लूंगी।”
दो महीने बाद देश से लॉकडाउन को हटाया गया। धीरे-धीरे लोग सामान्य जीवन जीने लगे। लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के डर से अब कोई भी आदमी महबूबा जिस्म मंडी में नहीं दिखता था। जिन गलियों से हमेशा घुंघरुओं की आवाज़ आती रहती थी उन गलियों में अब केवल सन्नाटा छाया रहने लगा। रेशमा ने अपने सभी पुराने चाहने वालों को फ़ोन किया, लेकिन सबने कोरोना वायरस का डर बता कर आने से इंकार कर दिया। फिर एक बार रेशमा को अपने चुरा लिए गए पैसों की याद आई तो उसने पैसों की बरामदगी के विषय में जानने के लिए दारोग़ा को फ़ोन किया। दारोग़ा ने “तफ़्तीश जारी है” कहकर फोन काट दिया।
दो दिन बाद पुलिस ने रेशमा की अलमारी से चुराए गए पैसे बरामद कर लिए और असली अपराधी नीरज देव को भी गिरफ़्तार कर लिया। पैसे की बरामदगी की जानकारी देने के लिए पुलिस रेशमा के कोठे पर आती है, जहां रेशमा मृत अवस्था में पाई जाती है।

✍️ आलोक कौशिक 

आलोक कौशिक

नाम- आलोक कौशिक, शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य), पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन, साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित, पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101, अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com