किस टाइप के शिक्षकों के लिए है ‘शिक्षक दिवस’ ?
वो बड़े सरकार को इधर तकने की फुरसत कहाँ ? वो तो वर्ल्ड बैंक के ‘सर्व शिक्षा अभियान’ की राशि पर नज़र गड़ाए हैं, वहीं प्रायशः विद्यालयों में लगभग 200 छात्रों में मात्र एक शिक्षक है और नियमावली ऐसी कि छात्रों की तरफ बड़े आँखों से निहारना तक नहीं ! वो थाली निहारते एमडीएम से खाली चाटते हुए बच्चे, कि चावल की बोरी गायब… हेडमास्टर इसी के जोड़-तोड़ और शिक्षाधिकारियों से टांका भिड़ाने में रहते, कभी गंडामन… तो कौन दोषी ? ये सर्वपल्ली साहब यूनिवर्सिटी में रहे, इसतरह के शिक्षक कहाँ रहे ? फिर इस महापुरुष के जन्मदिवस शिक्षक दिवस कैसा ? अगर हुआ भी मनाना, तो भी, बिहार के ये शिक्षक अपने किस पदनाम से ‘शिक्षक दिवस’ मनाएं ? ऐसे में गुरु-गोविंद सामने खड़े हैं, किसको लागूँ पाँव ? सब बेकार !
अभिभावक इन्हें कहते– ‘फटीचर’ और नेता जी कहते- ‘राष्ट्रनिर्माता’…. शिक्षक पुरस्कार में शिक्षाधिकारियों से चापलूस लिए झोलझाल इकट्ठे किए को अवार्ड । ऐसे में मनाइये, क्या खूब मनाइये…. ‘शिक्षक दिवस’ !
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ध्यातव्य है, सभी कामगारों को सेवानिवृति-पेंशन मिले ! विगत के वर्षों में माननीय सांसदों के पेंशनों में वृद्धि पर जिसतरह से संसद सदस्यों के विचारों में एकरूपता देखी गयी और विपक्ष सहित सत्ता पक्ष के माननीयों ने जिस भाँति से प्रतिरोध छोड़ गलबहियाँ लगाए, मगर ऐसी ही कृत्य अगर माननीय जी द्वारा किसी विधेयक को पास कराने में लगाए जाते, तो भारतीय जनताओं से टैक्स रूप में वसूले गए करोड़ों रुपयों की क्षति तब सदन नहीं चलने के कारण बर्बाद नहीं होते ! फिर इन क्षति के रुपयों से किसी राज्य के संविदाकर्मियों के वेतन में वृद्धि की जा सकती थी।
बिहार की बात करूँ, तो यहाँ 5 लाख संविदाकर्मियों में लगभग 4 लाख तो नियोजित शिक्षक हैं , जिनकी वेतन बहुत कम है और पेंशन तो इनकी है ही नहीं। शिक्षक जो राष्ट्रनिमाता होते हैं, उन्हें नियोजित शिक्षक कहा जाकर उनमें हीनता डाल दी गयी है और विश्व बैंक संपोषित ये शिक्षक और उनका परिवार कई माहों से फांकाकशी झेल रहे होते हैं । क्या इन संविदाकर्मियों के वेतनवृद्धि और पेंशन के लिए कोई करोड़पति सांसद-विधायक ‘माननीय डॉ. कर्ण सिंह’ की भाँति अपने वेतन और पेंशन का त्याग नहीं कर सकते क्या?