सामाजिक

लॉकडाउन ने बहुत कुछ सिखाया

लॉकडाउन शब्द पूरे विश्व में सर चढ़कर बोल रहा है। इससे पहले इन्सान ने इस स्थिति का सामना ही नहीं किया था। सभी को अपने ही घर पर कैद रहना है। पहले पहल यह असंभव जान पड़ा किन्तु कोरोना के भय ने लॉकडाउन रहना भी सिखा दिया। अब हम इसके अभ्यस्त हो रहे हैं।
इस लॉकडाउन ने हमें सही मायने में जीना सिखाया , जीवन के मूल्यों से अवगत कराया। सबसे पहली बात जो हमने सीखी वह है संयमित और अनुशासित रहना। जिसके कारन ही भारत ने गंभीर स्थिति से स्वयं को बचा लिया। घर में कैद होकर हमने जाना आजादी का महत्त्व , जो हम पशु – पक्षियों से छीनते आये हैं। घर पर रहकर अपनों के करीब आना , अपना काम आप करना , घर के बने सात्विक आहार का महत्त्व , जिम्मेदारी का एहसास आदि बहुत कुछ है जो हम सीख रहे हैं। इन्सान इस तरह भी जीवित रह सकता जब सिर्फ अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति हो ‘’ रोटी , कपडा और मकान ‘’
आज सडक पर गाड़ियाँ नहीं दौड़ती , नदियों में कोई पाप धोने नहीं पहुँच रहा, प्रकृति प्रदूषणमुक्त हो रही है। भावी पीढ़ी सीख रही है कि इस तरह हम प्रक्रति की सुरक्षा कर सकते हैं। सभी धार्मिक स्थल बंद हैं फिर घर बैठे हम ईश्वर से सक्षात्कार कर रहे हैं न ! यह सिद्ध करता है कि कण – कण में भगवान हैं। प्रार्थना में ही शक्ति है।
जरा नजर डालें विवाह जैसे खर्चीले संस्कारों पर , तो इन दिनों बड़ी सादगी से मात्र घरेलु सदस्यों की उपस्थिति में विवाह संपन्न हो रहे हैं। लॉकडाउन ने सिखाया एसा भी होता है। अच्छा हो आगे भी यही परंपरा बन जाये, धन के प्रदर्शन पर रोक लग जाये। इस दौरान म्रत्यु भी हुई हैं उनकी जो कोरोना रोगी नहीं थे। मात्र घरेलु सदस्यों के के बीच बिना यहाँ भी कार्यक्रम संपन्न हो रहे हैं। म्रत्युभोज नहीं हो रहे , यह संकेत है इस समांजिक परंपरा को इस हद तक ही रहने दिया जाए। शोकाकुल परिवार पर अचानक आया बोझ तो कम होगा।
किसी का दर्द दूर करने बड़ी कोई सेवा नहीं यह सीखा हमने कोरोना जंग के सैनिक डॉक्टरों से। वो नहीं देखते जात – पात , अपनी जान पर खेलकर सभी की सेवा कर रहे हैं उस हालात में जब शत्रु अद्रश्य है। अपने पर थूकने वालों भी जान बचाई , इन्होने सिद्ध किया ‘’ नर सेवा नारायण सेवा ‘’ लोग अपने ही माता – पिता , परिजनों की सेवा का अवसर आने पर नाक – भौं सिकोड़ते हैं उनके लिए यह सबक है।
लॉकडाउन ने सिखाया अन्न दान महादान , क्योकि भूख , लाचारी , मजबूरी चारों ओर पसरी है। इनकी मदद भी करने को लोग तत्पर है जो समाज में अपना उदाहरण प्रस्तुत करते हैं सज्जन मनुष्य होने का। नव निहालों के लिए यह व्याहारिक सीख है। इन दिनों लोगों का कलाकार भी जमकर बहार आ रहा है , जो जता रहा है कि , कला कभी मरती नहीं और यह स्वयं को खुश रखने का सबसे बड़ा साधन है। विकट परिस्थिति में स्वयं को खुश रखना भी एक कला ही है। बच्चो के साथ खेलना भी मानसिक तुष्टि का आधार है , जो अवसर आज मिल रहा है। मजे की बात किसी रसोई में लॉकडाउन नहीं सभी जगह महिलाये सुरुचिपूर्ण भोजन पका हैं वो भी बिना किसी विकार के , इसलिए नहीं कि मज़बूरी है बल्कि इसलिए कि उन्हें पता है कोई ‘’ बाहर से खा कर आ रहे हैं ‘’ यह नहीं कहने वाला। बच्चे खेल खेल में घरेलु काम सीख रहे हैं साथ ही नए अंदाज में पढाई कर रहे हैं।
सही मायने में जीवन नैतिक मूल्यों ने सीखने और समझने आ यह अनोखा अवसर है। आवश्कताएं सिमित करके दया , दान , धर्म के महत्त्व को स्वीकार करके अपनों के साथ खुश रहकर जीना ही जीना है। लॉकडाउन एक न एक दिन खत्म हो जाएगा पर सिखा जाएगा जीने का अंदाज मानो कह रहा है ‘’ जीना इसी का नाम है। ‘’

— गायत्री बाजपेई शुक्ला

गायत्री बाजपेई शुक्ला

पति का नाम - सतीश कुमार शुक्ला पता - रायपुर, छत्तीसगढ शिक्षा - एम.ए. , बी एड. संप्रति - शिक्षिका (ब्राइटन इंटरनेशनल स्कूल रायपुर ) रूचि - लेखन और चित्रकला प्रकाशित रचना - साझा संकलन (काव्य ) अनंता, विविध समाचार-पत्रों में ई - पत्रिकाओं में लेख और कविता, समाजिक समस्या पर आधारित नुक्कड़ नाटकों की पटकथा लेखन एवं सफल संचालन किया गया । सम्मान - मारवाड़ी युवा मंच आस्था द्वारा कविता पाठ (मातृत्व दिवस ) हेतु विशेष पुरस्कार , " वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ "काव्य प्रतियोगिता में विजेता सम्मान, विश्व हिन्दू लेखिका परिषद् द्वारा सम्मानित आदि ।