स्वास्थ्य

अवचेतन मन की शक्ति के अनूठे चमत्कार

आपने अपने जीवन में कई बार अनुभव किया होगा कि आप किसी से मिलने की इच्छा करते हैं और अनायास ही वह कुछ ही मिनटों में आपके सामने प्रकट हो जाता है। इससे मिलते जुलते अनुभव हमें जीवन में अक्सर देखने को मिलते हैं, इन्हें हम संयोग या टेलीपैथी कहकर अनदेखा कर देते हैं। आइए ! शास्त्रों के वचनों को समक्ष रखते हुए हम इन अनूठी घटनाओं की पृष्ठभूमि में झाँकने का प्रयास करते हैं। श्रीरामचरितमानस में कुछ चौपाइयों और श्रीमद्भागवतगीता के अनेकों श्लोकों में भगवान् स्वयं अपने श्रीमुख से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कहते हैं कि “मैं हरेक प्राणी के ह्रदय में विराजमान हूँ।” पन्द्रहवें अध्याय के पन्द्रहवें श्लोक में भगवान कहते हैं, सर्वस्य चाहं हृदि संनिविष्टो, अर्थात् परमात्मा सबके ह्रदय में विराजमान हैं। आम बोलचाल में हमारे पूर्वजों का यह कथन आज भी प्रचलन में है कि भगवान् सब देखता है। यह भी कि “भगवान के यहाँ देर है परन्तु अन्धेर नहीं है”। हमारे शास्त्रों में चित्रगुप्त नामक देवता का वर्णन मिलता है, जो सभी के पाप-पुण्यों का सटीक लेखाजोखा रखते हैं। इसके प्रमाण स्वरूप एक पौराणिक कथा का उल्लेख प्रासंगिक होगा। भीष्म पितामह ने अपने एक पूर्व जन्म में अपने रास्ते में आए सर्प को छड़ी से उठाकर फेंक दिया था, जो काँटों की झाड़ी में गिरा और कई दिनों बाद उसकी मृत्यु हुई, उसी घटना के परिणामस्वरूप उन्हें शर शैया मिली और कई दिनों बाद उनकी मृत्यु हुई।
क्या ईश्वर हैं?
एक सवाल बार-बार हम सबके मन मस्तिष्क में उभरता रहता है और हमें विश्वास-अविश्वास के झूले में डोलायमान करता रहता है कि क्या भगवान् हैं? भारत जैसी पुण्यभूमि में ईश्वर ने अनेक बार अवतार लिए हैं, भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के अतिरिक्त परशुरामजी, वामन अवतार, नरहरि के साथ जैनियों के 24 तीर्थंकर, बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान गौतम बुद्ध भी इसी पावन भारतभूमि में अवतरित हुए थे, इसलिए हमें तो भगवान की हर क्षण उपस्थिति को अनुभव करते रहना चाहिए, किसी प्रकार का संशय होना ही नहीं चाहिए। अस्तु, हमें भगवान के होने न होने के असमंजस से निकालने का काम किया है, अनेक पाश्चात्य विज्ञानियों ने। डॉ.एंड्रयू न्यूबर्ग, एमडी, और मार्क राबर्ट वाल्डमैन ने मिलकर एक पुस्तक लिखी है, “हाउ गॉड चेंजेज योर ब्रेन”, डॉ.एंड्रयू न्यूबर्ग मार्कस इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव हेल्थ के डायरेक्टर और जेफरसन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के फिजिशियन हैं। उन्होंने भगवान में विश्वास करने वाले अनेक व्यक्तियों के समय-समय पर किए गए मस्तिष्क के सीटी स्कैन के आधार पर उक्त पुस्तक लिखी है। यानी पुख्ता वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर कि ईश्वर पर आपका विश्वास आपके मस्तिष्क में न केवल क्रियात्मक बल्कि उल्लेखनीय संरचनात्मक बदलाव (एनाटामिकल चेंजेज) लाने में सक्षम है। न्यूरोसाइंटिस्ट फ्रेड एग्बेअरे ने भी अपने क्लीनिकल अनुभवों के पुख्ता आधार पर एक पुस्तक “बेनिफिट्स इन गॉड” लिख डाली है। वास्तव में जब तक हम भगवान की उपस्थिति पर दृढ विश्वास नहीं करेंगे, तब तक हम अवचेतन की अपार शक्ति के प्रति आश्वस्त भी नहीं हो सकते हैं।
अवचेतन मन की अपार शक्ति
कई पाठकों ने सन्त-महात्माओं के आशीर्वादों से अविश्वसनीय और चामत्कारिक लाभ होने के अनुभवों को निकट से देखा अथवा विश्वसनीय मित्र-परिजनों-परिचितों से सुना होगा। असाध्य रोगों से मुक्ति भी देखी होगी। कई लोग दुर्दान्त और असाध्य रोगों से अपने मनोबल के बलबूते पूर्णत: स्वस्थ हो जाते हैं। कई ओलम्पिक खिलाड़ियों के किस्सें हमने सुने-पढ़े हैं कि चिकित्सकों के स्पष्ट मना करने के बाद भी उन्होंने अपनी बीमारी को पराजित कर ओलम्पिक खेलों में भाग लिया और जीते हैं। विश्व प्रसिद्ध ब्रह्माण्ड और भौतिक विज्ञानी स्टीफन हाकिंग को तो सारी दुनिया जानती है। ऐसे सच्चे किस्सें भी अनेक हैं, जो यह बताते हैं कि चलने में अक्षम बिस्तर पर महीनों से पड़ा पक्षाघात से पीड़ित व्यक्ति कक्ष में अचानक आग लगने से भागने में सफल हो जाता है। ये सब अवचेतन मन की शक्ति के प्रमाण हैं। विश्व प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डॉ. जोसेफ मर्फी ने अनेकों पुस्तकों की रचना की है, सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तक “पॉवर ऑफ योर सबकान्शियस माइंड”, “मिराकल्स ऑफ योर माइंड”, और “बिलीव इन योरसेल्फ” ऐसी पुस्तकें हैं, जिनमें अनेक सच्चे किस्सों के माध्यम से अवचेतन मन की शक्ति को सत्यापित किया गया है। आस्ट्रिया के स्की हर्मन मेइर ने तीस फीट नीचे गिरने और काफी चोटिल होने के बावजूद उसी प्रतियोगिता में भाग लिया और स्कीइंग में कई मैडल जीते थे। फरीदाबाद की दिव्यांग अरुणिमा सिन्हा ने एवरेस्ट पर झंडा फहरा कर दुनिया को हतप्रभ कर दिया था। हीरा मानेक रतन नामक एक व्यक्ति प्रतिदिन केवल 1500 मिलीलीटर पानी पी कर कई वर्षों से स्वस्थ रहते हुए जीवित हैं, उनका अध्ययन नासा के वैज्ञानिकों ने भी किया। एक जैन साध्वी दशकों से केवल चाय पीकर स्वस्थ और जीवित हैं।
हिप्नोटिज्म के विशेषज्ञ अपनी सम्मोहक शक्ति के माध्यम से रोगी के अवचेतन मन की शक्ति को सुझावों के द्वारा जागृत कर चामत्कारिक प्रभावों का अनुभव करवाते हैं। जिसने कभी नृत्य नहीं किया, वह हिप्नोटिस्ट के कहने पर श्रेष्ठ नर्तक की तरह नाचने लगता है और पानी से डरने वाले लोग कुशल तैराकों की तरह तैरने लगते हैं।
हरेक की अवचेतन मन की शक्ति को जगाना आखिर कठिन क्यों है ?
जब हमारे पास ही अपार शक्ति है तो फिर ऐसा क्यों है कि बिरले लोगों को ही इसका लाभ मिलता है। सभी को क्यों नहीं ? वास्तव में इसमें सबसे बड़ी बाधा है, हमारा अपना चेतन मष्तिष्क। जो अपने किन्तु-परन्तु और अपनी अहंकार से समृद्ध विज्ञानसम्मत समझ का आसरा लेकर अवचेतन की ऐसी किसी शक्ति के अस्तित्व को नकारता रहता है। यदि हमें कोई कहें कि फलां-फलां या अमुक-अमुक सन्त के आशीर्वाद से पंगु व्यक्ति दौड़ने लगा तो हम उसका भरपूर मजाक उड़ाएंगे। क्योंकि हमारी चेतन यानी बौद्धिक समझ के हिसाब से ऐसा असम्भव है।
इसलिए आपने देखा होगा हिप्नोटिज्म के विशेषज्ञ जिस-किस तरीके से, तेज रोशनी, तेज रफ़्तार में घुमती रंग बिरंगी रोशनी, तेज आवाज, आदि के माध्यम से अथवा लगातार अपनी सम्मोहक आँखों में झांकने का कहकर आपकी आँखों और चेतन मस्तिष्क को इतना थका देते हैं कि आप आँख मींचकर निढाल पड़े रहने की स्थिति में जाने लगते हैं। बस, यहाँ आपका किन्तु-परन्तु करने वाला चेतन मस्तिष्क थक कर चूर-चूर हो जाता है, उसमें शक्ति ही नहीं बचती की तर्क-वितर्क कर सके। तन्द्रा की इस अवस्था में अवचेतन मन, दिए गए सुझावों को ग्रहण करने की आदर्श स्थिति में होता है। मेरे परिचित और मुझे आत्म सुझाव का सैद्धान्तिक ज्ञान देने वाले इन्दौर के हिप्नोटिस्ट एवं एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ डॉ.सुधीर खेतावत ने मोबाइल के माध्यम से मेरे कुछ परिचित रोगियों को आत्म सुझाव की विधा के आधार पर उनके स्वास्थ्य में उल्लेखनीय बदलाव लाने का प्रयास किया है। एक रोगी को इसोफेगस का कैंसर है और ऑपरेशन के कारण वे कुछ शब्द भी स्पष्ट नहीं बोल पाते थे और कुछ ही दिनों के आत्म-सुझाव के बाद अब वे दो-तीन वाक्य स्पष्ट बोलने में सक्षम हुए हैं। एक अन्य पैतालिस वर्षीय रोगी अपने किडनी के रोग से बेहद निराश थे, आत्म-सुझाव से अब उनकी निराशा दूर होने लगी है, और जीवन के प्रति नजरिया बदला है। यदि उन्होंने अपने अवचेतन मन की शक्ति पर विश्वास करते रहेंगे तो उन्हें किडनी ट्रांसप्लांटेशन की जरूरत नहीं रहेगी। एक और 75 वर्षीय रोगी, जो रात में एक घंटे ही सो पाते थे, वे अब दो घंटे सोने लगे हैं। दरअसल डॉ.खेतावत उनके अवचेतन मन की शक्ति को जगाकर उनके स्वास्थ्य में सुधार करने का प्रयास कर रहे हैं।
श्रद्धा और आस्था के बलबूते मिल सकते हैं, अवचेतन मन के अनुपम उपहार
ऐसा नहीं है कि हरेक के अवचेतन मन को जगाने के लिए किसी हिप्नोटिस्ट का होना अनिवार्य है। वास्तव में यदि कोई व्यक्ति पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ इस बात पर दृढ़तापूर्वक पूर्ण विश्वास कर यह सोच लें कि मेरा अवचेतन मन अत्यन्त शक्तिमान है और इसके बलबूते मैं अपने जीवन को बदल सकता हूँ तो फिर वह रात्रि में सोते समय किसी सकारात्मक सुझाव को दोहराता है तो वह सुझाव सौ प्रतिशत काम करने लगता है। नेपोलियन हिल की पुस्तक “थिंक एण्ड ग्रो रिच”, जिसकी छह करोड़ से अधिक प्रतियां बिक चुकी है। यह पुस्तक नेपोलियन हिल ने दुनिया के 500 सफलतम लोगों के साक्षात्कार के आधार पर लिखी है। शीर्षक से ही स्पष्ट है कि यदि आप दृढ़तापूर्वक सोचते हैं तो आप धनवान बन सकते हैं, धन कमाना, यह अवचेतन मन की शक्ति के अनेक पहलूओं में से एक पक्ष है।
क्या असाध्य बीमारी को बिना उपचार परास्त कर सकते हैं?
जी हाँ, किसी भी गम्भीर रोग का घर बैठे उपचार सम्भव है, वह भी बिना डॉक्टर के। यदि कोई बीमार है, और स्वस्थ होना चाहता है, तो इसे आजमाना चाहिए। वैसे भी जिन्दगी आजमाकर देखने की चीज है। यह उपाय थोड़ा कठिन अवश्य है, क्योंकि तर्कों और विज्ञान की आड़ में हम अपने अवचेतन की अतुलित शक्ति के प्रति आश्वस्त नहीं हो पाते हैं। परन्तु जिन लोगों की बीमारी असाध्य है अथवा जिनके पास पैसे या अन्य सुविधा नहीं है, वे इसे बेझिझक आजमा सकते हैं, क्योंकि पैसे के अभाव में और कोई रास्ता भी तो नहीं बचता है। (और वर्तमान में लॉक डाउन जैसे समय में भी यह पद्धति अपनाई जा सकती है।) रात को सोते समय, जब आप पूरीतरह थक जाएं, बिस्तर पर लेटे-लेटे ही बार-बार दोहराएं कि आप स्वस्थ हो रहे हैं, आपकी बीमारी दूर हो रही है। आप बीमार नहीं हैं, इसे दोहराते रहें, बार-बार दोहराते रहें। नींद आने तक दोहराते रहें। सुबह नींद खुलने पर यही क्रम थोड़ी देर तक चलने दें। यदि आप किसी गुरु, इष्टदेव या देवी पर पूर्ण विश्वास रखते हैं तो उनकी कृपा का आव्हान करें और पूर्ण विश्वास करें। जैसे “मैं अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से स्वस्थ हो रहा हूँ।”
श्रीरामचरितमानस के प्रथम श्लोक के अनुसार श्रद्धा और विश्वास के प्रतीक भवानी और शंकर का स्मरण करें। पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ इस विधा को अपनाएं। श्रीरामचरितमानस में आख़री दोहे को भी मनमस्तिष्क में सदैव के लिए धारण करें। उसमें लिखा है कि जैसे कामी को नारी और लोभी को धन प्यारा होता है, वैसे ही भगवान राम मुझे प्यारे लगें। “कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम। तिमि रघुनाथ निरन्तर लागहु मोहि राम।I इसका अर्थ यहां यह समझें कि जैसे कामी व्यक्ति हर समय किसी नारी की कामना करता है, लोभी या रिश्वतखोर व्यक्ति हमेशा धन या काली कमाई की लालसा रखता है या बहुत प्यासे व्यक्ति को पानी की अपेक्षा होती है और भूखे व्यक्ति को केवल और केवल भोजन ही दिखता है, ठीक वैसे ही, उतनी ही तीव्र इच्छा या पिपासा के साथ आपके दिलोदिमाग में यही विचार रहे कि आप स्वस्थ हो रहे हैं। उतनी त्वरा, उतनी तीव्र प्यास, उतनी शिद्दत होना अनिवार्य है।
यदि दिल की कारोनरी नलियाँ यानी आर्टरीज बन्द होने की कगार पर पहुँच चुकी हैं और बस, आप ऑपरेशन की प्रतीक्षा कर रहे हैं तो उस प्रतीक्षा की घड़ी में इस विचार को पूरी दृढ़ता के साथ दोहराएं कि मेरी सभी आर्टरीज खुल रही हैं और साथ में नई कोलेटरल्स भी बन कर ह्रदय को पर्याप्त रक्त प्रदान कर रही हैं, इस विचार को पूरी आस्था और विश्वास के साथ दोहराते रहें। धीरे-धीरे नहीं बल्कि आपके विश्वास के अनुरूप जल्दी ही आपको अच्छे समाचार ह्रदय स्वयं देगा और आपकी रिपोर्ट्स पहले से बेहतर होने की सम्भावना को नकारा नहीं जा सकेगा। किडनी में पथरी के रोगी सोचें की पथरी छोटी होती जा रही है, या टूट कर नीचे खिसकती जा रही है और मूत्र मार्ग से उसका निष्कासन बिना परेशानी के हो रहा है तो यकीन मानिए ऐसा ही होगा। असाध्य कब्ज का रोगी मल को आँतों से नीचे खिसकता महसूस करें। किडनी फैल्युअर का रोगी सुझाव दें कि मेरी दोनों किडनियों ने सामान्य रूप से काम करना शुरू कर दिया है, अनिद्रा का रोगी स्वयं को कल्पना में निद्रा देवी की कोमल गोद में सुकूनदेह निद्रा करते हुए अनुभव करें। किसी भी प्रकार के दर्द से परेशान रोगी बार-बार दोहराए कि दर्द कम हो रहा है, कम होता जा रहा है। सौ फीसदी आराम मिलेगा। ट्यूमर से ग्रस्त रोगी ट्यूमर की साइज़ प्रतिदिन छोटी होने की कल्पना करें। अपनी बीमारी के हिसाब से वाक्य की रचना आप स्वयं कर सकते हैं। किन्हीं ख़ास शब्दों की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह आपके और आपके अवचेतन मन के बीच का आपसी और व्यक्तिगत संवाद है। इसमें कोई दूसरा व्यक्ति है ही नहीं, जो आपके शब्दों की किसी निर्धारित व्यूहरचना को सुनने के बाद ही काम करेगा। यदि कोई दूसरा है भी तो वे आपके इष्टदेव हैं, आपके गुरु हो सकते हैं। हनुमानजी पर विश्वास हो तो हनुमान चालीसा की चौपाई – “नासै रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा” को दोहराना लाभदायक होगा। अवचेतन मन की शक्ति का अपने हितसाधन के लिए उपयोग करने वाले व्यक्ति प्रतिदिन सुबह अपने इष्टदेव से प्रार्थना करें कि “हे परमात्मा, मैं अपने तन, इन्द्रियों, प्राण, मन, बुद्धि और विवेक से जो भी सायास अथवा अनायास ग्रहण करूं वह आपकी कृपा से मेरे लिए परम कल्याणकारी हो, ऐसी कृपा कीजिए।” इसका अर्थ यह हुआ कि हम जो भी भोजन, सांस आदि ग्रहण करेंगे, उनमें विद्यमान दूषित पदार्थ हमारे लिए परमात्मा की कृपा से निरापद होंगे।
दूसरों के अन्तर्मन में विराजमान परमात्मा को अनदेखा ना करें
अवचेतन मन की शक्ति से लाभ की अपेक्षा करने वाले यह अवश्य ध्यान रखें कि आपका भोजन सात्विक हो, आपका दूसरों के भीतर विराजमान ईश्वर के प्रति व्यवहार सम्मानजनक हो और द्वेषपूर्ण तथा कुटिलतापूर्ण तो कदापि ना हो। इस विषय में भगवान श्रीमद्भागवत गीता में अपने श्रीमुख से कहते हैं कि “अहंकार, बल, घमण्ड और क्रोधादि के वशीभूत होकर जो व्यक्ति दूसरों को कष्ट पहुंचाता है तथा निन्दक है, वह अपने और दूसरों के शरीर में विराजमान मुझ अन्तर्यामी से ईर्ष्या और शत्रुता रखने वाला होता है। वह क्रूरकर्मी, नराधम और पापाचारी है।”
इमाइल कूए: एक बेहद चमत्कारी चिकित्सक
इमाइल कूए एक फ्रेंच मनोवैज्ञानिक थे (1857 – 1926), उन्होंने हजारों रोगियों को इसी विधा से पूर्णतया निरोगी करने का पराक्रम सालोंसाल तक किया था, दुनियाभर के रोगी उनके पास आते थे और वे यही कहते थे कि बार-बार दोहराओ की मैं स्वस्थ हूँ, मैं स्वस्थ हूँ, मैं स्वस्थ हूँ।
न्यूरोप्लास्टीसिटी
अब बात करते हैं, एक और अनूठी चिकित्सा पद्धति की, जो आधुनिक विज्ञान की अनुपम देन है, जिसका नाम है, न्यूरोप्लास्टीसिटी। न्यूरोप्लास्टीसिटी एक अद्भुत चिकित्सा पद्धति है, दरअसल इसके पीछे एक प्रसिद्ध सत्यकथा का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा और यह आपके विश्वास को स्वयं की अवचेतन शक्ति पर दृढ़ता प्रदान करेगा। अमेरिका के न्यूरोसाइंटिस्ट डॉ.पॉल बैच रीटा, जो यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोंसिन-मैडिसन के तहत यू.डब्लू मेडिकल स्कूल में प्रोफेसर थे, उनके पिता श्री पेड्रो को 1958 में सेरिब्रल इन्फार्क्शन (स्ट्रोक) के कारण एक साइड का पक्षाघात (पेरालिसिस) हो गया और उनकी आवाज चली गई। अनेक चिकित्सकों का स्पष्ट कथन था कि अब वे कभी ठीक नहीं हो सकते हैं। पेड्रो के एक बेटे, जिनका नाम जॉर्ज बैच वाय रीटा साइकोलॉजिस्ट था, वे अपने पिता का मनोवैज्ञानिक उपचार कर रहे थे, कुछ समय बाद पेड्रो पूरीतरह स्वस्थ हो गए। चिकित्सकों के लिए यह अनहोनी और चमत्कारी घटना थी, उन्होंने एमआरआई करवाए, परन्तु देखा गया कि सबकुछ जस का तस था। यह और भी अधिक चौंकाने वाली बात थी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था। जब पेड्रो की स्वाभाविक मृत्यु हुई तो उनकी आटोप्सी डॉ.मैरी जेन अन्गुइलर ने की और देखा कि उनके ब्रेन स्टेम का काफी बड़ा हिस्सा डैमेज था, जो रिपेयर नहीं हुआ था। दरअसल उनके न्यूरल पाथवे और साइनेप्सेस में परिवर्तन हुए थे, जिसके कारण पेड्रो, इतने गम्भीर डैमेज के बावजूद आश्चर्यजनक रूप से स्वस्थ हो चुके थे, दरअसल यह उनका अपने मनोवैज्ञानिक बेटे के सकारात्मक सुझावों पर पूरे भरोसे का परिणाम था। चूँकि इस पूरे मामले में न्यूरल कनेक्शन्स में हुए बदलाव ने ही चमत्कार किया था, इसलिए इसे न्यूरोप्लास्टिसिटी नाम दिया गया।
छाया चिकित्सा (इमेजिनेशन चिकित्सा), ब्रेन ट्यूमर गायब हुआ
अवचेतन मन की शक्ति के उल्लेख के इसी तारतम्य में एक बड़ा ही अनूठा सच्चा किस्सा मैंने दशकों पहले कादम्बिनी में पढ़ा था, उसका उल्लेख प्रासंगिक होगा। अमेरिका अथवा किसी अन्य देश का किस्सा है। एक बच्चे को ब्रेन ट्यूमर हो गया था, जो तेजी से बढ़ रहा था, चिकित्सकों ने हाथ खड़े कर दिए थे। ट्रीटिंग विशेषज्ञ डॉक्टर हर बार सीटी स्कैन करवाते थे और उस ट्यूमर की बढ़ती साइज़ के विषय में माता-पिता को बताते रहते थे और कहते थे कि जब इसकी साइज़ बढ़कर इतनी हो जाएगी तो बच्चे की मौत को कोई नहीं रोक सकेगा। डाक्साब की सलाह पर स्कूल छुडवा दिया गया और परेशान और दुखी माता-पिता धीरे-धीरे मौत की तरफ बढ़ रहे बच्चे को विवशतापूर्वक देखते रहते थे। ऐसी ही एक विजिट के दौरान जब डॉक्टर साहब बॉक्स में सीटी स्कैन की फिल्म दिखाते हुए माता-पिता को ट्यूमर की साइज़ और उसके खतरों के बारे में समझा रहे थे, तब पहली बार उस बच्चे ने उनकी सारी बातें चुपचाप सुन ली। यहाँ से कहानी में एक रोमांचक मोड़ आना शुरू हुआ, परन्तु इसका पता कहानी के क्लाइमेक्स पर ही पता चलेगा। अगली बार शायद कुछ माह बाद वे फिर से डॉक्टर के पास पहुंचे और बोला कि बच्चे में सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं, डॉक्टर ने बच्चे को एग्जामिन किया तो उन्हें लगा कि वाकई बच्चा पहले से बेहतर है तो उन्होंने प्रश्न किया कि क्या आप किसी दूसरी चिकित्सा पद्धति से उपचार करवा रहे हैं तो अभिभावकों का जवाब था कि बिलकुल नहीं। डॉक्टर चौंक गए, उन्होंने फिर से सीटी स्कैन करवाया, तो पता चला ट्यूमर की साइज़ अनपेक्षित रूप से छोटी हो गई थी, वे हतप्रभ थे। खैर, उन्होंने उसे घर भेज दिया और कहा कि देखिए, क्या बच्चा आप लोगों के ऑफिस जाने के बाद किसी अन्य से ट्रीटमेंट तो नहीं ले रहा है, उन्होंने कहा कि यह असम्भव है, क्योंकि हमारा बच्चा इस दृष्टि से सक्षम नहीं है।
अगली बार, बच्चे में और भी अधिक सकारात्मक बदलाव आए और सीटी स्कैन में ट्यूमर और भी छोटा हो चुका था। चूँकि यह बदलाव अविश्वसनीय था, इसलिए डॉक्टर और माता-पिता चौंक गए। बच्चे की दिनचर्या पर बारीकी से नजर रखना शुरू की गई। अभिभावकों को पता था कि वह बच्चा टाइम बिताने के लिए वीडियो गेम खेला करता था, वह अपने कमरे में वीडियो गेम खेलते समय ट्यूमर की कल्पना एक ड्रैगन के रूप में करता था और उस ड्रैगन पर घण्टों ताल गोलीबारी करता रहता था और उस पर हर दिन चारों तरफ से हमला करता रहता था। और चीखता भी था कि मैं तुम्हें मार डालूँगा, काट डालूँगा। यह सिलसिला चलता रहा, बच्चा बेहतर होता चला गया और एक दिन ऐसा आया कि सिकुड़ते सिकुड़ते उसका ट्यूमर ख़त्म हो गया।
डॉक्टर साहब के लिए यह एकदम नया अनुभव था, क्योंकि बिना किसी उपचार के बढ़ते जाने वाला कार्सिनोजनिक ट्यूमर एक सीमा तक बढ़ते जाने के बाद घटते-घटते समाप्त हो गया था। उन्होंने इस चिकित्सा पद्धति को नाम दिया, इमेज थेरेपी। उनके अस्पताल में एक नर्स थी, उस नर्स को सभी किस्म की निश्चेतक दवाओं (बेहोश करने वाली) से एलर्जी थी। उसे भी कैंसरस ट्यूमर था। डॉक्टर साहब ने उसे सलाह दी कि आप यह आस्था और विश्वास के साथ सोचा करें कि सफ़ेद घोड़े पर सवार आपकी लाखों श्वेत रक्त कणिकाएं हाथ में तलवार लेकर उस ट्यूमर को काट रही हैं। मरती क्या नहीं करती, क्योंकि उसका तो ऑपरेशन सम्भव ही नहीं था। कुछ माह बाद वह नर्स अपने ट्यूमर से पूर्णतया मुक्त हो गई। कादम्बिनी के उसी अंक में लिखा था कि वेदों में इसे छाया चिकित्सा के रूप में उल्लेखित किया गया है। हालांकि मुझे ऐसा कोई सन्दर्भ नहीं मिला। दुर्भाग्यवश तीन-चार घर बदलने के चलते कादम्बिनी का वह अंक मैं सहेज नहीं पाया, अभी भी उसकी तलाश जारी है।

— डॉ. मनोहर लाल भण्डारी
एमबीबीएस, एमडी, फिजियोलॉजी