कविता

वृक्ष

देख वृक्षों की यह मार्मिक दशा
जी अब मेरा घबराता है
वृक्षों बिना नही है अस्तित्व कोई
क्यों मानव समझ नही पाता है
जिसने दिया हमको सहारा
उसको ही बेसहारा छोड़ जाता है
वृक्ष ही जीवन का आधार है
इसे ही मानव काटने को तैयार है
चाहे धूप हो या फिर भारी वर्षा
भूख लगे या फिर लगे ठंड
हरदम वृक्षों ने साथ निभाया है
है यह मूल्यवान धरोहर कुदरत की
जिसे मानव समझ नहीं पाया है
अब भी नहीं है कुछ बिगड़ा
वृक्षों में बसते हैं भगवान
सच्चे मन से करो सम्मान
यदि एक काटेंगे तो दस लगायेंगे
ऐसा हो हम सबका विचार
जो काट रहे अंधाधुंध वृक्षों को
बनाना है उनको समझदार
— मौर्यवंशी शिव कुमार

मौर्यवंशी शिव कुमार

M- 9696668143 भदोही, उत्तर प्रदेश