फ़िल्म ‘चॉक एंड डस्टर’ : शिक्षकों के प्रति दुराग्रह बंद करें सरकार !
हर सरकारों को हिंदी फ़िल्म ‘चॉक एंड डस्टर’ अवश्य ही देखनी चाहिए । प्रियदर्शिनी इंदिरा ‘इंदु’ जब शांतिनिकेतन में ‘रवीन्द्रनाथ ठाकुर’ के सौजन्यत: पढ़ती थी, तब उनकी कक्षा विशेषत: हिंदी के लिए नहीं ही थी ।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी भी तब वहाँ हिंदी के शिक्षक हुआ करते थे, एकदिन सहेलियों के साथ नोंक-झोंक करती हुई व दौड़ती हुई द्विवेदीजी की कक्षा में वे प्रवेश कर गयी, तब आचार्यश्री हिंदी पढ़ा रहे थे, हिंदी कक्षा में अनुशासनपूर्वक खड़ी की खड़ी रह गयी, जबतक कक्षा समाप्त नहीं हुई, हालांकि इनसे पूर्व और बाद भी वे वहाँ हिंदी कक्षा में सम्मिलित नहीं हुई ! जब हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का निधन हुआ, तब इंदिरा नेहरू गाँधी भारत की प्रधानमंत्री थी और एक कक्षा – घंटी की इस छात्रा ने अपने गुरु के अंतिम यात्रा में कुछ समय के लिए शरीक होकर व उन्हें सादर नमन कर गुरु के उऋण होने की कुछ प्रयत्न तो कर ही सकते हैं ।
यह उद्धरण आज के ‘स्टूडेंट’ के लिए सीख हो सकती है, जो अपने ‘टीचर’ को प्रणाम करना छोड़ दिये हैं ! उनकी सरकार ने आचार्यश्री को ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित भी की थी यानी ऐसे किये जाते हैं, शिक्षकों के सम्मान । अगर नियोजित शिक्षकों के प्रति सरकार किसी प्रकार से दुराग्रह से दूर रहे तो वे अपनी इसी बात को अनसुनी कानों को सुनाने के लिए आखिर क्यों मैट्रिक परीक्षा तिथि 17 फरवरी से हड़ताल पर गए, जिनके एक माह हो गए । बिहार सरकार को शिक्षकों, खासकर नियोजित शिक्षकों की सुननी चाहिए। अब तक स्कूल खुली नहीं, पर बिहार सरकार ऐसे शिक्षकों को हड़ताल तोड़कर स्कूल भेज रहे, भले वहाँ विद्यार्थी रहें या नहीं ! फ़िल्म ‘चॉक एंड डस्टर’ हर सरकारों को देखनी चाहिए !