कविता

शालिनी छंद

मीठी बोली, आज से बोलनी है।
जो भी बोलो, बात तो तोलनी है।।
आओ आओ, आज तो गीत गायें।
खेलें साथी, मीत सारे बनायें।।

ज्ञानी तो हैं, ज्ञान देते सदा ही।
लेना जो भी आज वो तो बंदा ही।।
बाधाएँ जो, राह रोके तनी हैं।
वो ही देखो, राह देने बनी हैं।।

चट्टानें तो, हैं चुनौती सुनो तो।
जो भी है वो, ही ज़रा सा गुनो तो।।
जो भी हो लो, आज संकल्प ऐसे।
सोचोगे जो, तो रहें कल्प वैसे।।

आओ पूजा, भी करें माँ विराजी।
झाँकी की भी, शान देखो न साजी।।
साथी साथी, आरती भी उतारो ।
माँ देखो तो, पापियों को उबारो।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति