गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

तेरी कसमें वादे और तेरी जुदाई का
रखा है हिसाब मैंने पाई पाई का
जरा सी बात का बतंगड़ बना कर
बना डाला है तुमने पहाड़ राई का
जख्मों को कुरेद कर वो पूछते हैं रोज
असर हो रहा है क्या दवाई का
सुलह के बाद पता चलता है अक्सर
कि ये तो मसहला ही नहीं था लड़ाई का
उधड़ते रिश्तो को सी लेंगे फिर से
आता है हुनर हमें तुरपाई का
तेरे सहारे की जरूरत नहीं हमें अब
कर लेंगे इलाज हम गम-ए-तन्हाई का।
— संजू श्रृंगी