कविता

वक्त

हरदम सभी को कुछ न कुछ सिखाता है ये वक्त
हरदम दौडा-दौडा सा चला जाता रहता है ये वक्त
कभी-कभी थकने पर भी नहि कटता है ये वक्त
कभी- कभी दिल चाहता है कि थम जाये ये वक्त
कभी कोमल कमल सा मुलायम सा है ये वक्त
कभी-कभी पत्थर सा लगता कठोर है ये वक्त
कभी अमीरी, गरीबी का अहसास दिलाता है वक्त
कभी सुरज कि रोशनी सा तो कभी अमावस कि रात सा वक्त
कभी यादो के परे भुत से भविष्य मे ले जाती धुम्मस सा ये वक्त
कभी खिलाये पकवानो ,कभी निवाले के दिये तरसाता ये वक्त
कभी पीछे मुड़कर देखे,गुजरते पलों का पिटारा है ये वक्त
कभी हम कलम और शाही से पन्नो पर अंकित कर लेते हैं वक्त।
— निधि कुंवराणी

निधि कुंवराणी

कवयित्री निधि कुंवराणी बोटाद, गुजरात की रहने वाली है। उन्होंने अपना अनुस्नात "अंग्रेजी साहित्य" में किया हुआ है। और वो अंग्रेजी विश्वविद्यालय मे व्याख्याता भी रह चुकी है। उनकी रचनाये देश-विदेश की कई किताबों और पत्रिकाओं में भी छप चुकी है। और उनके साहित्य योगदान के लिए कहीं जगहों पर सम्मानित भी किया गया है।