कविता

कविता – न्याय-मन्दिर

रघुनंदन जिस पर जन्मे थे, वो अवध भूमि थी पावन
मर्यादा के साकार मूर्ति थे , और सदाचार से उपवन
दया भाव के सागर थे , और त्याग हिमालय जैसा
मानवता के उच्च शिखर थे, हुआ न कोई वैसा
भरत -लक्ष्मण भातृप्रेम के एक अनूठे प्राणी
आज सुनाये तुमको सुनलो रघुकुल राम कहानी….

मध्यकाल के भारत मे था, एक बाहरी शासक आया
उसी दुष्ट का नाम था बाबर और इस्लाम धर्म था व्यापक छाया
उसी दुराचारी बाबर ने, रामलला का मन्दिर तोड़ा
रामलला की पावन भूमि, को संघर्ष बनाकर छोड़ा
हिन्दू -मुस्लिम भाई-भाई मे रार वही पर उठती है
जब भी कोई बात शुरू हो, तकरार वही पर दिखती है
समय बीतते बीत गया, वो बात कही पर दबी रही
स्वतन्त्र देश के होते ही बस बात वही से शुरू हुई
सन् 49 मे रामभक्त ने ऐसा साहस दिखा दिया
प्रकट हुए श्री रामलला जी ,नव इतिहास बना दिया
रामलला के मन्दिर पर, फिर एक बनी थी नयी कहानी
आज सुनाये तुमको सुनलो रघुकुल राम कहानी….

कोई कहे ये चमत्कार, कोई कहे ये निराधार
कैसे हो निर्णय अब इसका, चारो तरफ है हाहाकार
न्यायालय ने हस्तक्षेप किया, मसले को अपने हाथ लिया
न्यायालय बोला न्याय मिलेगा, देता आज जुबानी
आज सुनाये तुमको सुनलो रघुकुल राम कहानी …..

समय बीतते  बीत गया, पर न्याय किसी को मिला नही
आश लगी थी सबको लेकिन, केश जरा भी हिला नही
बांध सब्र का टूटा सबका ,आखिर एक दिन आया था
कुछ लोगो ने जीत कहा , कुछ लोगो ने शोक मनाया था
ध्वस्त हुई थी वही इमारत जो विवाद की थी निशानी
आज सुनाये तुमको सुनलो रघुकुल राम कहानी…..

ध्वस्त इमारत के मलबे पर, तब तम्बू को ताना था
यही राम की जन्म भूमि है, सब हिन्दू ने माना था
भक्त कह रहे रामलला  का मन्दिर वही बनायेंगे
पाक नमाजी कहते थे, हम हरा ध्वज फहरायेगे
कट्टरता से टकराव हुए, और कितने दंगे झेले थे
कही मुस्लिम की भीड़ लगी थी, कही रामभक्त के मेले थे
इलाहाबाद के न्यायालय ने अपना निर्णय दे डाला
भूमि के हिस्से तीन किये, और सबको निर्भय कर डाला
हिन्दू, मुस्लिम पक्ष बने थे, पक्ष बना था नागा अखाड़ा
विजय-पराजय हुई नही थी , नही गया था कोई पछाड़ा
कोई पक्ष न सहमत था तब इलाहाबाद के न्यायालय से
सबने अर्जी दे डाली तब सर्वोच्च न्यायालय मे
दिन पर दिन तारीख बढी ,और समय लगा इसमे भी काफी
सभी दलीले सुनी गयी और कोई पक्ष रहा न बाकी
न्यायालय ने इस मुद्दे पर भी,समझौता अजमाया था
समझौता भी असफल था, और हाथ नही कुछ आया था
आज समय वह भी था आया, जब इसका निर्णय आयेगा
चमक बढ़ेगी भगवे की या हरा ध्वज फहरायेगा
निर्णय का माहौल बना था, पुलिस प्रशासन बहुत डरा था
हो न जाये कुछ अनहोनी, लिख न जाये नयी कहानी
चप्पे-चप्पे पुलिस लगी थी, धड़कन सबकी थमी हुई थी
न्यायालय पर नजर टिकी थी, सांसें मानो रुकी हुई थी
पर धन्य-धन्य है न्यायालय, जिसने सबका ध्यान किया
सर्वधर्म की स्वर्गभूमि का फिर उसने सम्मान किया
रामलला का मन्दिर बनने का आदेश सुनाया था
मस्जिद को भी जगह मिलेगी, यह सब को बतलाया था
हर भारतवासी ने तब इस निर्णय को स्वीकार किया
वसुधैव कुटुम्बकम के  सपने को तब सबने साकार किया

— मोहित शुक्ल

मोहित शुक्ल

B.Sc. NDUAT Kumarganj ayodhya ग्राम -बरौला लखीमपुर खीरी