मुक्तक/दोहा

मुक्तक – चितचोर

राधा कान्हा ही जपे , कहाँ गया चितचोर ।
मोहन को ढूँढ़ूँ कहाँ , हो जायेगी भोर ।।
कुंज गली में घूमती , आन मिलो अब श्याम ,
तेरे हाथों है अभी , मेरी जीवन डोर ।।

ब्रज के हो तुम लाड़ले , लेते सबको मोह ।
घूमकर सब गली गली , लेते ग्वाले टोह ।।
कृष्ण प्यारे सभी तुझे , चाहें मन से आज ,
लीला करते देखते , सबको लेते मोह ।।

देखो घटा अभी घिरी , घिरी हुई घनघोर ।
सावन में अब रास से , बहला दो चितचोर ।।
शीतल छा बहार अभी , लो छाये आनंद ,
चित चुरा के छुपे कहाँ , पूछे मन का मोर ।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति