श्री हनुमान इकतीसा
दोहा :–
प्रथम सुमिर श्रीगुरु चरण, ध्याऊं श्री रघुवीर ।
किंचित दृष्टि मात्र से, हरे सकल भव पीर ।।1।।
प्रखर बुद्धि जिन संग में, जो बल के भंडार ।
राम प्रभू के दास का, वंदन बारंबार ।।2।।
चौपाई :–
जय जय जय हनुमत बलधारी ।
आसुरी शक्ति तुमसे हारी ।।1।।
प्रिय श्रीराम जय संतन-रक्षक ।
काल-असुर सब कष्ट के भक्षक ।।2।।
हेम वर्ण शोभित शुभ वेषा ।
गदा हाथ घुंघराले केशा ।।3।।
अंजनी सुत पवन के अंशी ।
भय असाधु संतन अवतंसी ।।4।।
अद्भुत बाल अवस्था कीनी ।
सूरज को मुख में धर लीनी ।।5।।
दिन में रात रात भी राता ।
हुआ अचरज अंजनी माता ।।6।।
देव दनुज सारे घबराये ।
तब जाकर मुख बाहर लाये ।।7।।
हे पवनसुत करनि तुम्हारी ।
कुछ विस्मित कुछ सुस्मित सारी ।।8।।
रूप सहज संतन दिखलाया ।
काल रूप दुष्टों ने पाया ।।9।।
श्वांस श्वांस में राम रमाकर ।
मन क्रम बचन भक्ति अपनाकर ।।10।।
ॠष्यमुख पर्वत के नियराइ ।
प्रभु-सुग्रीव कि करी मिताइ ।।11।।
कर उद्घोष चले नभ मग में ।
सुरसा मारी सागर जल में ।।12।।
खोज करी लंका में जाकर ।
अमर हुए वर माँ से पाकर ।।13।।
थे सब कपियों में तुम न्यारे ।
राम लखन माँ सिय के प्यारे ।।14।।
विभिषणहीं संदेश बखाना ।
मैं प्रभु दास नाम हनुमाना ।।15।।
संस्कार की जो प्रतिच्छाया ।
राघव काज सदा अपनाया ।।16।।
सुनतहि दूत भूत सब भागे ।
जो नहिं सुनहिं रहहीं अभागे ।।17।।
धूं – धूं खूब जलाई लंका ।
रखी नहीं कोई भी शंका ।।18।।
सभी विघ्न उसके मिट जावें ।
जो नित पवनतनय को ध्यावें ।।19।।
जो नित नाम पवनसुत जापे ।
कलिकाल उनको नहीं व्यापे ।।20।।
डाकिन शाकिन पानी माँगे।
सुन हुंकार भूत सब भागे ।।21।।
लक्ष्मण जब संकट में आये ।
बूँटी लाकर प्राण बचाये ।।22।।
पथ मारीच विघ्न उपजाया ।
दुष्ट को यमलोक पहुंचाया ।।23।।
कपटी कालनेमि संहारा ।
पाताली अहिरावण मारा ।।24।।
हे अजर अमर प्रिय निज भक्ता ।
तव सेवा में जग अनुरक्ता ।।25।।
करें भक्ति कलिकाल सुजाना ।
सहज प्रसन्न होय सब जाना ।।26।।
जय गिरिधर जय मारुति नंदन ।
रामचरित मानस के चंदन ।।27।।
शरण तिहारी जो भी आया ।
अभय हुआ सुख उसने पाया ।।28
जो पढ़े हनुमान – इकतीसा ।
ताकूं मिले सहज जगदीशा ।।29।।
कृपा-दृष्टि अपनी बरसाओ ।
जग दुष्टों से मुक्त कराओ ।।30।।
राम-भक्ति कपिवर कर दाना ।
जिससे हो सबका कल्याणा ।।31।।
दोहा :-
लिखि इकतीसा व्यग्र कवि, रख बालाजी ध्यान ।
भली होय इस जगत की, राम करें कल्यान ।।3।।
— व्यग्र पाण्डे