लघुकथा

ममता की पीठिका

आज अचानक ही डॉक्टर संचिता की स्मृति में डॉक्टर टक्कर की याद ने दस्तक दी.

कोरोना की जंग जारी है. अपने-अपने तरीके से सभी उसका मुकाबला कर रहे हैं. संचिता और उसके पतिदेव बाकी सभी कोरोना वॉरियर्स की तरह अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद हैं. डॉक्टर का कर्त्तव्य इस समय सिर्फ और सिर्फ अपने पेशेंट्स की देखभाल तो करना है ही, कभी-कभी अपनी गृहस्थी को कोरोना से बचाने के लिए कुर्बानी भी देनी पड़ती है.

”मैं भी यही तो कर रही हूं!” स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर संचिता सोचती है.

”रोज नवजात शिशुओं को नया जीवन देना और माताओं के मन को तृप्त करना मेरा कर्तव्य है, पर मेरे मन की ममता की कुर्सी 5 महीने से खाली है.” कभी-कभी उसके मन में आता.

”दो साल के बेटे को दादा-दादी के हवाले करके हम पांच महीने से अलग किराए का घर लेकर रह रहे हैं. कोरोना के डर की वजह से बेटे को छू भी नहीं सकते. सिर्फ रोज फोन कॉल करके बात करते हैं. कभी-कभी कार में बैठे-बैठे दूर से देख भर लेते हैं. बच्चे को क्या समझाऊं, जब ऐसे में मेरा मन ही उसे छू न पाने के कारण मायूस हो जाता है!” कभी-कभी संचिता के मन की मायूसी मुखर हो जाती.

”डॉक्टर टक्कर, जो मेरी प्रशिक्षिका थीं. पचास वर्ष की डॉक्टर टक्कर न जाने मेरे जैसे कितने प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण देकर डॉक्टर बना चुकी थीं, हजारों माताओं की कोख को अंकुरित कर चुकी थीं, लेकिन उनकी अपनी कोख ममता के अंकुर से रिक्त थी. कोई उम्मीद भी नहीं थी.” डॉक्टर संचिता की सोच ममता-सलिल से सिंचित हो रही थी.

”शुक्र है मेरी ममता की पीठिका रिक्त तो नहीं है, कुछ समय के लिए रिक्तता अवश्य आई है.” ऊपर से खुश दिखाई देने का असफल प्रयास करती डॉक्टर टक्कर की रिक्तता की विकट पीड़ा उसने महसूस की थी.

”मुझे कुछ समय के लिए अवकाश ले लेना चाहिए या जॉब छोड़ देनी चाहिए.” वह सोचती, लेकिन तन-मन-धन से रोगियों की देखभाल करने की हिपोक्रीत्ज़ की शपथ याद आते ही डॉक्टर संचिता मनोयोग से नवजात शिशुओं-जच्चाओं की सेवा-सुश्रूषा में मग्न हो जातीं.

”शायद ऐसा करने से उसे ममता की पीठिका कभी रिक्त लगे ही नहीं!” उसने मन को समझाया.

 

पुनश्च-
पीठिका का अर्थ-
1. वह पत्थर का आसन या पीढ़ा जिसपर देव मूर्ति की स्थापना की जाती है 2. पीढ़ा या छोटी चौकी 3. पुस्तक का अंश या भाग 4. खंभे आदि का आधार 5. पृष्ठभूमि। 6.कुर्सी. यहां पीठिका का अर्थ पृष्ठभूमि। या.कुर्सी से है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “ममता की पीठिका

  • लीला तिवानी

    हिपोक्रीत्ज़ की शपथ (Hippocratic Oath) ऐतिहासिक रूप से चिकित्सकों एवं चिकित्सा व्यसायियों द्वारा ली जाने वाली शपथ है। माना जाता है कि यह हिपोक्रीत्ज़ द्वारा लिखी गयी है। यह आयोनिक ग्रीक में लिखा गया है।

    इस शपथ का हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है-

    मैं अपोलो वैद्य, अस्क्लीपिअस, ईयईआ, पानाकीआ और सारे देवी-देवताओं की कसम खाता हूँ और उन्हें हाज़िर-नाज़िर मानकर कहता हूँ कि मैं अपनी योग्यता और परख-शक्ति के अनुसार इस शपथ को पूरा करूँगा।
    जिस इंसान ने मुझे यह पेशा सिखाया है, मैं उसका उतना ही गहरा सम्मान करूँगा जितना अपने माता-पिता का करता हूँ। मैं जीवन-भर उसके साथ मिलकर काम करूँगा और उसे अगर कभी पैसों की ज़रूरत पड़ी, तो उसकी मदद करूँगा। उसके बेटों को अपना भाई समझूँगा और अगर वे चाहें, तो बगैर किसी फीस या शर्त के उन्हें सिखाऊँगा। मैं सिर्फ अपने बेटों, अपने गुरू के बेटों और उन सभी विद्यार्थियों को शिक्षा दूँगा जिन्होंने चिकित्सा के नियम के मुताबिक शपथ खायी और समझौते पर दस्तखत किए हैं। मैं उन्हें चिकित्सा के सिद्धान्त सिखाऊँगा, ज़बानी तौर पर हिदायतें दूँगा और जितनी बाकी बातें मैंने सीखी हैं, वे सब सिखाऊँगा।
    रोगी की सेहत के लिये यदि मुझे खान-पान में परहेज़ करना पड़े, तो मैं अपनी योग्यता और परख-शक्ति के मुताबिक ऐसा अवश्य करूँगा; किसी भी नुकसान या अन्याय से उनकी रक्षा करूँगा।
    मैं किसी के माँगने पर भी उसे विषैली दवा नहीं दूँगा और ना ही ऐसी दवा लेने की सलाह दूँगा। उसी तरह मैं किसी भी स्त्री को गर्भ गिराने की दवा नहीं दूँगा। मैं पूरी शुद्धता और पवित्रता के साथ अपनी ज़िंदगी और अपनी कला की रक्षा करूँगा।
    मैं किसी की सर्जरी नहीं करूँगा, उसकी भी नहीं जिसके किसी अंग में पथरी हो गयी हो, बल्कि यह काम उनके लिए छोड़ दूँगा जिनका यह पेशा है।
    मैं जिस किसी रोगी के घर जाऊँगा, उसके लाभ के लिए ही काम करूँगा, किसी के साथ जानबूझकर अन्याय नहीं करूँगा, हर तरह के बुरे काम से, खासकर स्त्रियों और पुरुषों के साथ लैंगिक संबंध रखने से दूर रहूँगा, फिर चाहे वे गुलाम हों या नहीं।
    चिकित्सा के समय या दूसरे समय, अगर मैंने रोगी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में कोई ऐसी बात देखी या सुनी जिसे दूसरों को बताना बिलकुल गलत होगा, तो मैं उस बात को अपने तक ही रखूँगा, ताकि रोगी की बदनामी न हो।
    अगर मैं इस शपथ को पूरा करूँ और कभी इसके विरुद्ध न जाऊँ, तो मेरी दुआ है कि मैं अपने जीवन और कला का आनंद उठाता रहूँ और लोगों में सदा के लिए मेरा नाम ऊँचा रहे; लेकिन अगर मैंने कभी यह शपथ तोड़ी और झूठा साबित हुआ, तो इस दुआ का बिलकुल उल्टा असर मुझ पर हो।

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