लघुकथा

मुझे कुछ कहना है

बहुत दिनों से सोच रहा हूँ कि आप से कुछ बात करूँ।पर डरता था कि कहीं आप मेरी किसी भूल का गुस्सा न कर बैठें।वैसे तो आपको गुस्सा होने का पूरा अधिकार है।आखिर हम आपकी ही संतान हैं।
आप कहा भी करते थे,डाँटते थे,समझाते भी थे, पर उस समय आपकी बातें खराब लगती थीं,पर अब महसूस हो रहा है जब मेरा बेटा मेरे साथ वैसा ही व्यवहार करता है,जैसा मैं आपके साथ करता था।तब मैं आपकी बातों को हवा में उड़ाता था,आज मेरा बेटा मुझे जरा भी इज्जत नहीं देता।मेरी एक भी नहीं सुनता,एकदम आवारा सा हो गया।पढ़ने लिखने में मन नहीं लगता उसका।
क्या करूँ, क्या न करूँ?कुछ समझ नहीं आ रहा है।आप थे तब जाने कैसे संभालते थे कि सब की जरूरत भी पूरी होती थीं, दो पैसे बचा भी लेते थे।आज मेरी कमाई भी ठीक ठाक है,पर कुछ न कुछ कमी कलह पैदा कर ही देती है।
बाबा के रहते हुए अगर मैंने उनकी बातों पर थोड़ा भी अमल किया होता तो भी शायद आज मैं इतना दु:खी न होता।उस समय तो लगता था कि बाबा सठिया गये हैं।
आज मुझे अपनी सभी गल्तियों का पश्चाताप हो रहा है।जीते जी आप को न सुख दे सका और न ही सम्मान।अब पित्तरों के प्रति तर्पण और श्राद्ध की औपचारिकता भी समाज को दिखाने के सिवा और क्या है?
मैं आपसे और अपने सभी पूर्वजों से अपनी गल्तियों के लिए क्षमा मांगता हू्ँ, आप लोग जहाँ भी हों,अपने बच्चे को माफ करें और अपना आशीर्वाद बाद दें।
हालांकि मैं इस योग्य नहीं हूँ कि मुझे क्षमा किया जा सके।फिर भी आज मैं वास्तव में शर्मिंदा हू्ँ।
आशा है कि आप सभी मेरी गल्तियों को मेरी नादानी समझकर माफ करेंगे और जब भी मैं आप लोगों के पास आऊँगा तब अपने चरणों में जगह देंगे।
पुन:बारम्बार क्षमा याचना के साथ…।
सभी पूर्वजों को शत शत नमन के साथ
आपका अपना ही..वंश बेल
— सुधीर श्रीवास्तव

*सुधीर श्रीवास्तव

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