लघुकथा

उठना नहीं है?

जिस दिन मैं सुबह देर से उठता हू्ँ उस दिन अनायास ही माँ की याद आ ही जाती है।क्योंकि माँ की ही तरह मेरी भी आदत सुबह जल्दी उठने की है।
फिर भी किसी दिन यदि किसी कारणवश मैं नहीं उठा तो माँ आकर जगाती और यह कहना कभी नहीं भूलती थी कि उठना नहीं है?कितना सोओगे?आज कुछ काम नहीं है?
आज माँ हमारे साथ नहीं है फिर भी उनकी बातें अपने पास होने का अहसास कराती रहती हैं।माँ की स्मृतियों को धरोहर के रूप में संजोए रखने की है।
कहने के लिए तो ये बहुत छोटी बात है परंतु यदि हम महसूस करते हैं तो अपने माँ ,बाप, बुजुर्ग,जो हमारे बीच नहीं हैं,उनके अपने पास होने का अहसास करते हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

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