सामाजिक

सहानुभूति

सहानुभूति शब्द मन में आते ही एक भाव उत्पन्न होता है बेचारगी।परंतु ऐसा नहीं है।सहानुभूति एक भाव है,संबल है।जिसको दर्शाने मात्र से हम किसी के लिये अपना समर्थन प्रकट करते हैं।इसे प्रकट करने का भाव इंगित करता है कि हम सामने वाले की लाचारी पर तरस ख रहे हैं या उसका हौसला बढ़ा रहे हैं।
वास्तव में सहानुभूति जताने के पीछे हमारी मंशा सामने वाले के लिए सदभाव से परिपूर्ण होनी चाहिए।जैसे जब एक बच्चा चोट खाता और रोता है तब हम सभी उसे बहादुर कहकर उसके प्रति सकारात्मक सहानुभूति प्रकट करते हैं,इसी तरह किसी बीमार व्यक्ति को हम बहुत सामान्य तरीक़े से बताते हैं अरे कुछ नहीं सब ठीक हो जायेगा।कोई बड़ी बात नहीं है।इसी तरह किसी की मृत्यु पर उसके परिजनों को हम यही समझाते हैं कि जो आया है वो जाता भी है हौसला रखिए।किसी विकलांग को भी हम शब्दों का प्रेरक संदेश देकर हौसला बढ़ाते हैं।
ये सारे भाव सहानुभुति की ही श्रेणी में आते हैं।साफ है कि सहानुभूति सकारात्मक हो तो उसका असर भी सकारात्मक होगी।यदि सहानुभूति में बेचारगी जैसे भाव होंगे तो उसका प्रभाव भी नकारात्मक ही प्रकट होकर सामने आयेगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

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