कविता

खतों से जुड़े अहसास

वह दौर जहाँ खतो से खैरियत पुछी जाती थी ,
खुशखबरी ली जाती थी ।
मजमून देख सब दिलों के हाल भांप लेते थे।
अश्कों से भीगे अल्फाज में छिपे भावों को जान लेते थे ।
गीतों गज़लो से सजे खत दिलों के तार छेड जाते थे
बातों के गुलदस्ते मौसमों के मिज़ाज फेर जाते थे ।
जहाँ खतें इश्क़ की गवाहियाँ दे जाती थी ।
किसी के जीत पर वाह वाहियाँ दे जाती थी ।
किसी के गमखार होते थे ।
किसी का इंतजार होते थे ।
अपने इलाके के डाकिये से सबको प्यार होते थे ।
वो बिन बोले ही सगों मे शुमार होते थे ।
वो पुराने दिन कालखंड का इतिहास होगें ।
खत हो गए विलुप्त,
अब खत्म खतों से जुड़े अहसास होगे ।

——— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)