लघुकथा

एक बार फिर!

आज एक बार फिर विशेष के आगे वही परिस्थिति आ गई थी, जो कई साल पहले आई थी. तब वह स्वयं अपने बेटे सुगाथा जितना था.

”उस समय वह स्वयं को एक चक्रव्यूह में फंसा हुआ अभिमन्यु समझने लगा था. उसे कॉमर्स लेकर अर्थशास्त्री बनने में रुचि थी और माता-पिता साइंस लेकर डॉक्टर-इंजीनियर बनाने को आमादा थे. सामाजिक स्टेटस का सवाल जो था! दिन-रात वही झगड़ा-रगड़ा चलता रहता था. वह तो अच्छा हुआ दादू ने श्रीकृष्ण बनकर पापा को समझाया और मुझे दुविधा के चक्रव्यूह से बाहर निकलने का अवसर मिल पाया. मेरे एक जाने-माने विख्यात अर्थशास्त्री बनने पर ममी-पापा की खुशी का भी ठिकाना नहीं था, पर सबसे अधिक खुशी दादू को ही हुई थी. वही तो उसके श्रीकृष्ण थे!” विशेष का मंथन जारी था.

”आज बात उसके विपरीत है.सुगाथा को कॉमर्स में जरा भी रुचि नहीं है, वह साइंस लेकर डॉक्टर-इंजीनियर बनने की राहें खुली रखना चाहता है. डॉक्टर-इंजीनियर बनकर देश-समाज की सेवा करने को उद्यत होना उसकी पहली चाहत है.” उसके मंथन से निष्कर्ष निकला.

उसकी चाहत की राहत बनने के लिए विशेष ने अपने जीवन की दिशा को स्वयं निर्धारित करने हेतु रिमोट सुगाथा के हाथ में थमाकर श्रीकृष्ण बनने का विशेष संकल्प लिया. एक बार फिर चक्रव्यूह का भेदन जो करना था!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “एक बार फिर!

  • लीला तिवानी

    सुगाथा को चक्रव्यूह से निकालने के लिए हर संभव सहायता देने की विशेष योजना का आयोजन करके बहुत ही विशेष और समाजोपयोगी विचारधारा को पुष्ट किया है

  • लीला तिवानी

    बच्चे जो कुछ मन से करना चाहते हैं, उसी दिशा में परिवार का हाथ, साथ और परामर्श मिल जाए, तो परिवार में सुख, शान्ति और आनंद का बसेरा हो सकता है, अन्यथा बच्चा अनमना रहकर पढ़ाई करेगा और पूरी क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर पाएगा. आजकल तो बच्चे अत्यंत कठोर कदम उठा लेते हैं, फिर परिवार वालों के पास भी पछताने के अलावा कुछ नहीं बचता.

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