सगुण-निर्गुण
लोग कहते हैं
मैं बेवफा हूँ !
आफत हूँ !
विशाल दौलत के मद्देनजर
अभीष्ट फल की प्रतीक्षा में
ज्ञानशील वह
विवेकहीन है ।
कौन जाने कब क्या हो ?
विशिष्टता के मदहोश लिए
आखिरी प्रतिबद्धता ही
अन्य सेवा के प्रसंगश:
गुरुगुण देखने की
परम्परा होकर हम
बढ़ते चले जाते हैं ।
नित्यनूतन
गुनागुन अभिष्टि लिए
एक तीतर, दो बटेर संग ।