कविता

समुद्र का पानी

समुद्र का पानी खारा है तो क्या हुआ,
सूरज की तपिश सह कर भी,
बादल बन उड़ता है,
टकराता है पत्थरों से,पहाड़ों से,
फिर भी अमृत बन कर धरा पे बरसता है,
मत भूलो की समुद्र के गर्भ में,
कितने ही अनमोल मोती छिपे हैं,
मत भूलो की समुद्र मंथन ने ही.
हमें अमरत्व के अमृत दिए हैं,
इसी से सावन और भादों की ऋतू आती है ,
सूखी धरा पर हरियाली छा जाती है,
प्रकृति भी इस खारे पानी को मृदु बना कर
हर प्राणी का जीवन धन्य कर जाती है
समुद्र तो उनके लिए खारा है ,
जो किनारे बैठ कर स्वाद लेते है,
समुद्र की गहराई को नहीं पहचानते ,
उसके गुणों को नहीं जानते,
समुद्र में छिपे मोती नहीं पहचानते,
समुद्र के गर्भ में ही जीवन धरा है ,
समुद्र के अस्तित्व से ही जीवित यह धरा है.
समुद्र का पानी खारा नहीं सचमुच “खरा” है.

— जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845