कविता

मेरा परिचय

सोच रही हूंँ , कैसे तुझसे
अपनी पहचान कराऊंँ मैं,
कैसे तुझसे आज मिलूंँ मैं,
कैसे परिचय करवाऊंँ मैं।

खेतों में तुम संग करूं किसानी,
बिजली से हाथ चलाऊं मैं,
सिर पर रखूंँ धान गट्ठर का,
घर के भी काम निपटाऊं मैं।

कमर में बांँध पुत्र को अपने,
दांँतों में लगाम फंँसाऊं मैं,
दोनों हाथों से तलवार चला,
दुश्मन का शीश गिराऊंँ मैं।

सतीत्व के तप से त्रिदेवों को,
पुत्र बना पालने में झुलाऊंँ मैं,
वचन दिया जो पूरा करूं मैं,
सदा अपना धर्म निभाऊं मैं।

कर्तव्य की जब बात चले तो,
कैसे पीछे हट जाऊं मैं,
राजकुंवर की रक्षा हेतु,
पुत्र का बलिदान कराऊं मैं।

व्यापार करूं, जहाज उड़ाऊं,
धरा से नभ तक परचम लहराऊं मैं,
किसी क्षेत्र में पीछे रहूं न।
हर विधि कर्म निभाऊं मैं।

मैं जगतजननि, अन्नपूर्णा भी,
कालभैरवी भी बन जाऊं मैं,
मेरे रूप हैं अनन्त ,अपार,
समय स्वरूप ढ़ल जाऊं मैं।

— सारिका “जागृति”

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)