कविताक्षणिकामुक्तक/दोहा

सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन- 22

धुंध पर कुछ काव्य-रचनाएं

1.चलती रही जिंदगी
कभी धुंध के साथ चलती रही जिंदगी,
कभी अंधेरे के साये में भी पलती रही जिंदगी.
कभी फूलों की सेज पर करवटें बदलती रही जिंदगी,
कभी कांटों की शैय्या पर भी चैन से सोती रही जिंदगी.
कभी आतंक के आतंक से ही आतंकित हो जलती रही जिंदगी,
कभी क्रूरता के दंश को शौर्य से झेलकर भी उछलती-जीती रही जिंदगी.
कभी मानव-धर्म को श्रेष्ठ मानकर बढ़ती रही जिंदगी,
कभी नैतिक मूल्यों में आस्था गंवाकर भी हिलती रही जिंदगी.
कभी सुविधाओं से घिरी रहकर सिसकती रही जिंदगी,
कभी अभावों के गर्त में गिरकर भी मुस्काती रही जिंदगी.
कभी अनुकूल परिस्थितियों में आहें भरती रही जिंदगी,
कभी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी राहें ढूंढती रही जिंदगी.
कभी कर्मठता के क्रियाकलापों से कूजती रही जिंदगी,
कभी अकर्मण्यता के पाश में भी फंसती रही जिंदगी.
कभी सुख के सान्निध्य में सरकती रही जिंदगी,
कभी दुःख के दारुण दंश से भी बिछलती रही जिंदगी.
कभी धुंध के साथ चलती रही जिंदगी,
कभी अंधेरे के साये में भी पलती रही जिंदगी,
अक्सर रोशनी को साथ लेकर सबको राह दिखाती रही जिंदगी.

2.धुंध छंट गई
समय बदलता ही रहता है
मौसम भी बदलता ही रहता है
कानून भी बदलते रहते हैं
उसूल भी बदलते रहते हैं
समय और मौसम की धुंध को
सहन करना आसान है
पर बदलते उसूलों और नियमों को
स्वीकार करना बहुत ही कठिन है.

यह जानते हुए भी
कि धुंध का अस्तित्व थोड़े समय का है
हम धुंध का लुत्फ़ नहीं उठा पाते
तुरंत घबरा जाते हैं
तनिक देर में ही
धुंध छंट जाती है
सूरज धुंध का घूंघट उठाता है
और धूप अपना जलवा दिखाती है
धुंध छंट जाती है, जिंदगी आगे बढ़ जाती है.

3.धुंध और धूप का रिश्ता

धुंध और धूप का रिश्ता विचित्र है
दोनों शब्द ‘ध’ वर्ण से सृजित हैं
यद्यपि दोनों का कोई मेल नहीं है
फिर भी वे मानो मित्र हैं

धुंध को अपना जलवा बिखेरने देने के लिए
धूप तनिक विनम्र हो जाती है
धूप को अपने शबाब पर आने देने के लिए
धुंध रास्ता देती जाती है.

धुंध शिष्य है, तो धूप गुरु है
धुंध अंत है, तो धूप शुरु है
धुंध को देखकर विश्वास होता है धूप ज़रूर आएगी
धुंध सिकंदर है, तो धूप पुरु है.

धुंध अज्ञान है, धूप है ज्ञान,
धुंध छंटे तो चमके भान,
शनैः-शनैः गुरु धुंध-अज्ञान हटाकर
बढ़ाए शिष्य का मान-सम्मान.

खिड़की के शीशे या स्विमिंग पूल की ग्रिल पर
चांदी की तरह चमकती धुंध बताती है
चांदनी धुंध में नहाई है
ओस-कणों को मोती की तरह चमकाती हुई धूप दर्शाती है
आने वाली बेला भी सुहानी है.

धुंध से न घबराने वाले
धूप में भी सुख के सुरूर को पा जाते हैं
धूप से न घबराने वाले
धुंध में भी सुकून के सुमन खिला जाते हैं.

धुंध और धूप का रिश्ता विचित्र है
दोनों ‘ध’ वर्ण से निःसृत हैं
यद्यपि दोनों का रास्ता एक नहीं है
फिर भी वे मानो मित्र हैं.

4.एक मुक्तक-
धुंध ने धुंध में चलना सिखा दिया,
एक कदम आगे बढ़ाया दूसरे का रास्ता दिखा दिया,
धुंध में भी चलती रहती है जिंदगी.
नए सिरे से यह सबक यह फिर से मन में लिखा दिया.

5.हाइकु-
धुंध ही धुंध
कैसे पड़े दिखाई
दृष्टि है कुंद
-लीला तिवानी

मेरा संक्षिप्त परिचय
मुझे बचपन से ही लेखन का शौक है. मैं राजकीय विद्यालय, दिल्ली से रिटायर्ड वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका हूं. कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास आदि लिखती रहती हूं. आजकल ब्लॉगिंग के काम में व्यस्त हूं.

मैं हिंदी-सिंधी-पंजाबी में गीत-कविता-भजन भी लिखती हूं. मेरी सिंधी कविता की एक पुस्तक भारत सरकार द्वारा और दूसरी दिल्ली राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता की एक पुस्तक ”अहसास जिंदा है” तथा भजनों की अनेक पुस्तकें और ई.पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक मंचों से भी जुड़ी हुई हूं. एक शोधपत्र दिल्ली सरकार द्वारा और एक भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं.

मेरे ब्लॉग की वेबसाइट है-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/

जय विजय की वेबसाइट है-
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*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन- 22

  • लीला तिवानी

    सर्दी की धुंध, मुख पर मास्क के साथ सिर पर मफलर के बीच बेचारा चश्मा धुंध के मारे परेशान हो जाता है. यह भी थोड़ी देर रहता है, फिर चश्मा भी आदी हो जाता है. धुंध को भी रहना है, चश्मे को भी. धूप का भी अपना अस्तित्व है और जिंदगी का भी. धुंध भी आती-जाती रहेगी

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