कविता

पिता:पहले और बाद

हम नादानियों के चलते
पिता के रहत
उनके जज्बात नहीं समझते,
जब तक समझते हैं
तब तक उन्हें खो चुके होते हैं।
उनके रहते हम खुद को
स्वच्छंद पाते हैं,
उनके जाने के बाद
जब जिम्मेदारियों का बोझ
फैसले लेने की दुविधा में
जब उलझकर परेशान होते हैं,
तब पिता बहुत याद आते हैं।
पिता के रहते जो मुश्किलें
आसान सी दिखती हैं
उनके जाने के बाद
वही पहाड़ नजर आते हैं।
पिता को खोने का अहसास
तब समझ में आता है
जब वास्तव में हम
पिता बनकर
खुद परेशान होकर भी
लाचार नजर आते हैं।
जीते जी उनके जज्बात से
खिलवाड़ करते रहे,
आज जब उनकी जगह
पर हम आये हैं,
तब पिता की अहमियत का
अहसास करते
बहुत पछताते हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921