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दत्त जयंती

दत्त जयंती
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मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है.शास्त्रों के अनुसार भगवान दत्तात्रेय का जन्म इसी तिथि को माना गया है.
भगवान दत्तात्रेय गुरु वंश के प्रथम गुरु  और योगी थे इस लिए उन्हें योगिराज कहा जाता है. शैव मत मानने वाले इन्हें शिवजी का अवतार और वैष्णव मत वाले इन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं. ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों देवों अर्थात त्रिदेव की शक्ति इनमें समाहित है.
इन्हें ब्रह्माजी के मानस पुत्र अत्रि ऋषि और अनुसूइया का पुत्र बताया गया है. इन्होंने जीवन में गुरु की महत्ता को बताया है. गुरु बिना न ज्ञान मिल सकता है ना ही भगवान. हजारो सालो तक घोर तपस्या करके आपने परम ज्ञान की प्राप्ति की और वही ज्ञान अपने शिष्यों में बाँटकर इसी परम्परा को आगे बढाया.
दत्त प्रभु ने अपने जीवन में 24 गुरु बनाए और हर छोटी बड़ी चीज से ज्ञान लिया.
पृथ्वी , कबूतर , पिंगला वेश्या , भौरा , सागर, वायु , सूर्य , पतंगा , बालक , आग , चाँद , आकाश , अजगर , साँप , कीड़ा , जल , मधुमक्की , कुरर पक्षी , मकड़ी , हिरण , हाथी , मछली ,तीर बनाने वाला और कुवारी कन्या को अपना गुरु बनाया.
श्री दत्तात्रेय की कथा
दत्त प्रभु आजन्म ब्रह्मचारी और अवधूत रहे इसलिए वह सर्वव्यापी कहलाए.यही कारण है कि तीनों ईश्वरीय शक्तियों से समाहित भगवान दत्तात्रेय की आराधना बहुत ही सफल, सुखदायी और शीघ्र फल देने वाली मानी गई है. मन, कर्म और वाणी से की गई उनकी उपासना भक्त को हर कठिनाई से मुक्ति दिलाती है.
एक बार माता लक्ष्मी,पार्वती व सरस्वती को अपनी पतिव्रता पर अत्यंत गर्व हो गया तो उनके अहंकार को नष्ट करने के लिए नारायण ने एक लीला रची.एक दिन देवर्षि नारद देवलोक पहुंचे और वहां तीनों देवियों के सामने अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूइया के पतिव्रता की तारीफ करने लगे कि उनसे बड़ी कोई पतिव्रता स्त्री नहीं है.
तीनों देवियों ने अपने स्वामियों से अनुसूइया  के पतिव्रता की परीक्षा लेने को कहा. तब भगवान शंकर, विष्णु व ब्रह्मा साधु वेश में अत्रि मुनि के आश्रम गए. अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे. तीनों ने देवी अनुसूइया से भिक्षा मांगी . जब वह भिक्षा देने लगी तो वह बोले आपको निर्वस्त्र होकर भिक्षा देनी होगी.
अनुसूइया पहले तो यह सुनकर चौंक गईं, लेकिन फिर साधुओं का अपमान न हो इस डर से उन्होंने अपने पति का स्मरण किया और कहा कि यदि मेरा पतिव्रत धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु छ:-छ: मास के शिशु बन जाएं.
ऐसा बोलते ही त्रिदेव शिशु हो गए. तब अनुसूइया ने माता रूप में उन्हें गोद में लेकर स्तनपान कराया और पालने में झूलाने लगीं. जब तीनों देव अपने स्थान पर नहीं लौटे तो देवियां व्याकुल हो गईं. तब नारद जी ने वहां आकर सारी बात बताई. तीनों देवियां अनुसूइया के पास आईं और क्षमा मांगी. तब देवी अनुसूइया ने त्रिदेव को अपने पूर्व रूप में कर दिया.
प्रसन्न होकर त्रिदेव ने उन्हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेंगे. तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ.

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020