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फेसबुक मित्र के प्रसंगश:

फेसबुक मित्र विनोय कुमार के प्रसंगश:…. कासिम रजवी ‘मजलिस ए इत्तिहाद उल मुसलमीन’ का नेता था, जिसने रजाकार नाम से संगठित हथियारबंद गिरोह तैयार कर रखी थी, जो रियासत में खुलेआम सांप्रदायिक लूटपाट हत्या और बलात्कार को अंजाम दे रहा था । निजाम और उसकी सरकार नंवबर 1947 आते आते पूरी तरह से इनकी गिरफ्त में था । कासिम रजवी ने ये एलान कर दिया कि हिंदुओं कि सत्ता में भागीदारी नहीं होगी हिंदुओं को मुस्लिम शासन कबूल करना ही होगा । सिर्फ मुस्लिम को ही राज करने का हक है , कासिम रजवी एक सांप्रदायिक शख्स था और उसी वजह से उसने एक बहुत बड़ी फौज तैयार की थी जिन्हें रजाकार कहा जाता था ।

कासिम रजवी ने नवाब के इर्द गिर्द अपने लोग भर दिए थे । हैदराबाद में वही होता था, जो कासिम रजवी चाहता था । रजवी ने सरदार साहब को सन्देश भिजवाया पटेल साहब आप हमारी फिक्र ना करें तो अच्छा है । वो दिन दूर नही है जब हैदराबाद की सरहदों को अरब सागर की लहरें छूयेगी और असफ जाही निजाम का झंडा लाल किले पर लहराएंगे।

उधर हैदराबाद ने पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपए उधार दे दिए । पाकिस्तान से हथियार की आमद की रिपोर्ट आने लगी । इधर दिल्ली में खुद जवाहर लाल नेहरु और उनकी पार्टी के कई सदस्य हैदराबाद के खिलाफ सैनिक कार्रवाई का विरोध कर रहे थे । उनका मानना था कि इससे दक्षिण भारत में भी दंगे फैल सकते हैं और बातचीत से ही रास्ता निकाला जाना चाहिये ।
हैदराबाद के शासक किसी भी समझौते के लिये तैयार नहीं थे और सरदार पटेल के मन में कोई दुविधा नहीं थी। वो जानते थे कि सैन्य कार्रवाई के अलावा हैदराबाद को भारत में शामिल करने का कोई और रास्ता नहीं थे । इस मामले में 8 सितंबर 1948 को अहम कैबिनेट मीटिंग हुई । इस मीटिंग में पटेल ने साफ कहा कि हैदराबाद की अराजकता बगैर सैन्य कार्रवाई के खत्म नहीं हो सकती, लेकिन प्रधानमंत्री नेहरु, इस मामले में सरदार पटेल और उनके मंत्रालय के कामकाज को लेकर काफी नाराज थे, उनकी राय अलग थी । सरदार पटेल ने बैठक में कहा कि हैदराबाद भारत के पेट में मौजूद एक कैंसर का रूप लेता जा रहा है, जिसका इलाज एक सर्जिकल ऑपरेशन करके ही संभव है यह कहकर सरदार मीटिंग से उठ कर चले गये।

भारतीय सेना और रजाकार सेना के बीच 5 दिन तक युद्ध चला। दो हजार से ज्यादा रजाकारों को भारतीय सेना ने मार गिराया और बाकी के रजाकार बीच मैदान से ही भाग खड़े हुए। चूंकि हैदराबाद के ‍निजाम की सेना ने भी भारतीय सेना के खिलाफ रजाकारों का साथ दिया था तो उन्हें भी भारी क्षति उठानी पड़ी और एक प्रकार से हैदराबाद की सारी सेना इस युद्ध में तहस-नहस हो गई। भारतीय सेना को इस कारवाई में अपने 66 जवान खोने पड़े जबकि 97 जवान घायल हुए। कासिम रिजवी को जिंदा गिरफ्तार किया गया और भारतीय जेल में डाला गया।

इसके बाद निजाम ने भारत के सामने खुद का और हैदराबाद का आत्म-समर्पण कर दिया। नेहरू और सरदार पटेल ने दरियादिली दिखाते हुए निजाम को गिरफ्तार नहीं किया और थोड़े समय तक उसे ही हैदराबाद का निजाम बने रहने कि इजाजत दे दी, लेकिन अब उसके पास पहले जैसी ताकत नहीं रही थी क्योंकि अब हैदराबाद का पूर्ण रूप से भारत में विलय हो गया था। इसके बाद जब सरदार पटेल हैदराबाद आए तो निजाम उस्मान अली खान को उनके स्वागत के लिए हवाई-अड्डे पर ना चाहते हुए भी जाना पड़ा क्योंकि सरदार पटेल कि ताकत वो अब अच्छे से देख और समझ चुके थे। सरदार का असरदार 56 इंची सीना !

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.