धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

हमारी आवाज ईश्वर की आवाज़

सभी जानते, मानते हैं कि हम ईश्वर की की ही सृष्टि हैं,ईश्वर का ही निर्माण हैं।फिर यह भी यथार्थ है कि बिना ईश्वरीय विधान के पत्ता तख नहीं हिलता।ऐसे में कर्ता तो मात्र ईश्वर ही हुआ न।फिर भी मानव अपने स्वभाव के अनुरूप खुद को ही सर्व समर्थ मानने की गर्वोक्ति करता रहता है।
परंतु सच यह है कि ईश्वर के हाथों में ही हमारे सारे क्रियाकलापों की डोर है,तब यह मानना ही पड़ता है कि जो भी हम करते हैं वह ईश्वरीय इच्छा है।
ठीक इसी तरह हम जो भी बोलते हैं वह ईश्वर की ही आवाज़ है,हम वही बोलते हैं जो ईश्वर चाहता है या यूं कहें कि हम मात्र ईश्वरीय प्रतिनिधि के तौर पर इस दुनियाँ में हैं और प्रतिनिधि को वही सब करने की बाध्यता है,जो उसका नियोक्ता चाहता है।ऐसे में यह हमें अच्छी तरह जितनी जल्दी समझ में आ जाये तो बेहतर कि बिना अपने नियोक्ता की मर्जी के बिना आवाज निकालना तो दूर हम एक साँस भी नहीं ले सकते।
सच यही है कि हम वो सब ही करते हैं जो ईश्वर चाहता है।इसी तरह हम जो भी बोलते हैं वो हमारी नहीं बल्कि हमारे नियोक्ता यानी ईश्वर की आवाज है।हमारे इस शरीर की छोटी से छोटी गतिविधि भी ईश्वर की ही मर्जी है।इसलिए हमारी आवाज भी ईश्वर की ही आवाज है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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