कविता

सोचना क्या है?

हमारा देश
विडंबनाओं से भरा है,
तभी तो हम बहुत कुछ
ऐसा कर जाते हैं
जो हमें करना नहीं चाहिए था।
परंतु अति उत्साह और
बिना सोचे विचारे हम
अपने श्रम और समय
दोनों को बरबाद कर देते हैं,
और चलो कोई बात नहीं
कहकर टाल जाते हैं।
उसके पीछे बस
मात्र इतना सा कारण है
कि हम जो सोचते हैं
वो करते नहीं,
अधिकतर हम वो ही करते हैं
जिसकी जरूरत नहीं ।
हम औरों की चिंता करते हैं
लोग क्या कहेंगे सोचते हैं,
ये ऐसा है,वो वैसा है
इसमें परेशान रहते हैं
बेकार की उधेड़बुन में उलझ
अपना ही नुकसान करते हैं।
सच यह है कि
हम भी बड़े अजीब है,
जो सोचने की जरूरत है
उससे पीछा छुड़ाते फिरते हैं,
जिससे हमारा भला हो
वह सोचने की
जहमत से बचते हैं।
अच्छा है अब तो सँभल जाइए
सोचिए, सोचिए और सोचकर सोचिए
वास्तव में हमें सोचना क्या है?
हमें अपने हित का सोचना है
या फिर हमें औरों की
फिक्र में ही डूबे रहना है।
फैसला आपको करना है
कम से कम यही सोचकर सोचिए
आखिर, आपको सोचना क्या है?

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921